Corona के नाम पर आपके साथ खेला जा रहा ये 'खेल'! The Truth Behind Coronavirus
आपको याद होगा कि कोरोना काल में लॉकडाउन के चलते लोगों को आर्थिक मामलों में राहत देने के लिए केन्द्र सरकार के वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक आफ इंडिया यानि आरबीआई की ओर से कई ऐलान किए गए थे। इनमें वित्त मंत्रालय और आरबीआई की ओर से लोगों को उनके लोन एवं अन्य बैंकिंग क्षेत्र की ईएमआई अथवा बकाया रकम चुकाने के लिए पहले तीन महीने और फिर बाद में तीन महीने अतिरिक्त का समय देने के लिए मोरेटोरियम की सुविधा दी गई थी। इसके साथ ही यह भी कहा गया था कि मोरेटोरियम की इस अवधि के दौरान कोई भी बैंक अथवा बैंकिंग से जुड़ी फाइनेंस कंपनी अपने ग्राहकों को ना तो बकाया चुकाने के लिए बाध्य करेंगी और ना ही इस अवधि के दौरान बकाया जमा नहीं कराने की सूरत में उनका सिबिल प्रभावित होगा।
लेकिन मौजूदा हालात तो कुछ और ही बयां करते हैं, जिन्हें देखते हुए यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि देश की कई बैंकें व बैंकिंग से जुड़ी फाइनेंस कंपनियां ऐसी भी हैं, जो शायद ना तो सरकार और वित्त मंत्रालय के निर्देशों की परवाह करती है और ना ही रिजर्व बैंक आफ इंडिया के निर्देशों की पालना में यकीन रखती हैं। इतना ही नहीं जहां सरकार ने लोगों को कोरोना काल और लॉकडाउन के चलते राहत की घोषणाएं की थीं, वहीं ये बैंकिंग कंपनिया कोरोना काल का फायदा उठाते हुए लोगों की जेबों पर एक प्रकार से डाका डालने की कोशिशें करने में जुटी हैं, जिसके चलते देशभर में कई जरूरतमंद जहां मदद के लिए तरस रहे हैं, वहीं इन बैंकिंग कंपनियों के ये आर्थिक सितम झेलने के लिए भी विवश दिखाई दे रहे हैं।
जी हां, कोरोना काल में जहां पूरे देश के सामने कई आर्थिक समस्याएं आईं, वहीं देश के हर खासोआम के सामने भी उनकी आर्थिक स्थिति से जुड़ कई समस्याएं पेश आई हैं, जिनके चलते ही सरकार और आरबीआई की ओर से लोगों को राहत प्रदान करने के लिए कई घोषणाएं की गई थीं। इस दौरान जहां मार्च में लॉकडाउन लगाए जाने की वजह से वित्त मंत्रालय और आरबीआई की ओर से पहले 31 मई तक और फिर बाद में 31 अगस्त तक के लिए बैंकिंग सेक्टर से जुड़े बकाया चुकाने के लिए मोरेटोरियम की सुविधा दी गई।
सरकार और आरबीआई की ओर से यह साफ कहा गया था कि इस दौरान बकाया राशि नहीं चुकाने की स्थिति में बैंकिंग और फाइनेंस कंपनियों की ओर से ना तो ग्राहकों को बकाया चुकाने के लिए बाध्य किया जाएगा और ना ही इसके लिए उनकी सिबिल को प्रभावित किया जाएगा। हालांकि इस अवधि के दौरान बकाया पर अतिरिक्त ब्याज राशि लिए जाने का फैसला बैंकों और फाइनेंस कंपनियों पर छोड़ा गया था, जिसका बैंकिंग और फाइनेंस कंपनियों ने बेजा इस्तेमाल किया। लेकिन दूसरी ओर ग्राहकों को जो राहत प्रदान की गई थी, उसका भी इन बैंकिंग और फाइनेंस कंपनियों ने अपने मनमाने तरीके से इस्तेमाल कर पहले से ही ढीली पड़ी ग्राहकों की जेबों पर डाका डालने का काम किया।
इस दौरान बकाया जमा नहीं कराने वाले ग्राहकों पर जहां बाउंस चार्ज लगाया गया, वहीं बकाया जमा नहीं कराने तक प्रत्येक दिन का पैनल चार्ज भी वसूला गया, जिसके चलते लोगों को करीब करीब दोगुनी तक रकम चुकानी पड़ी है। ऐसे में सरकार की ओर से लोगों को दी गई राहत उनके लिए उल्टी आफत का सबब बनने से कतई कम साबित नहीं हुई है।
बात सिर्फ यहीं तक समाप्त नहीं होती है साहब, क्योंकि बकाया राशि पर बाउंस चार्ज और हर दिन का पैनल चार्ज लगाए जाने के नाम पर गरीबों की जेबें काटने के बावजूद इन बैंकिंग और फाइनेंस कंपनियों ने कोरोना काल की राहत अवधि के दौरान बकाया जमा नहीं कराने के लिए ग्राहकों की सिबिल भी इस कदर बिगाड़ी है कि हो सकता है शायद इन ग्राहकों को भविष्य में कोई बैंक या फाइनेंस कंपनी उनकी जरूरत के समय लोन भी ना दें। और यदि कोई बैंक या फाइनेंस कंपनी उन्हें लोन दे भी देगी तो यकीनन वो भी इसके लिए मोटा इंट्रेस्ट रेट लेकर इसका बेजा इस्तेमाल करने से तो काई परहेज नहीं करेेगी।
बात अभी भी खत्म नहीं होती है जनाब, क्योंकि इन बैंकिंग और फाइनेंस कंपनियों का सितम सिर्फ यहीं तक थमने वाला थोड़े ना है, आखिर कोरोना काल का जमकर फायदा उठाते हुए इन्हें भी तो अपनी आर्थिक स्थिति जो सुधारनी है। हां, ये अलग बात है कि इनकी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए भले ही किसी मजबूर और लाचार इंसान की स्थिति बिगड़े तो बिगड़े, कर्ज के बोझ तले दबे किसी किसान की तरह उसके सामने भी सिर्फ खुदकुशी करने का रास्ता ही भले क्यों ना बचे, लेकिन इन बैंकिंग और फाइनेंस कंपनियों को इससे कोई सरोकार नहीं।
खैर, अब अपने दु:खड़े का रोना ये ग्राहक आखिर कहां और किसके सामने जाकर रोये, हार थक कर इन्हीं बैंकिंग और फाइनेंस कंपनियों के कस्टमर केयर पर फोन करना पड़ता है, जहां कोरोना के नाम पर सिमित स्टाफ होने का रोना रोकर पल्ला झाड़ लिया जाता है, जबकि उनके दफ्तरों में जाकर देखा जाए जो भरपूर मात्रा में स्टाफ मौजूद होता है, जो कि हो सकता है शायद अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की योजना बनाने में ही व्यस्त हों और ग्राहकों की अर्थव्यवस्था से कोई मतलब ना हो।
बहरहाल, अब ऐसे में सरकार और आरबीआई खुद ये विचार करे कि कोरोना काल और लॉकडाउन के चलते लोगों को जो राहत उन्होंने प्रदान करने की घोषणा की थी कि सचमुच वही राहत लोगों को मिली है, या फिर उस राहत का असल इस्तेमाल तो बैंकिंग और फाइनेंस कंपनियों ने कर लिया और लोगों के सिर पर आफत का पिटारा फोड़ दिया है, जिससे अपना सिर फुड़वाने के अतिरिक्त लोगों के पास का चारा तक नहीं बचा है।
लेकिन मौजूदा हालात तो कुछ और ही बयां करते हैं, जिन्हें देखते हुए यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि देश की कई बैंकें व बैंकिंग से जुड़ी फाइनेंस कंपनियां ऐसी भी हैं, जो शायद ना तो सरकार और वित्त मंत्रालय के निर्देशों की परवाह करती है और ना ही रिजर्व बैंक आफ इंडिया के निर्देशों की पालना में यकीन रखती हैं। इतना ही नहीं जहां सरकार ने लोगों को कोरोना काल और लॉकडाउन के चलते राहत की घोषणाएं की थीं, वहीं ये बैंकिंग कंपनिया कोरोना काल का फायदा उठाते हुए लोगों की जेबों पर एक प्रकार से डाका डालने की कोशिशें करने में जुटी हैं, जिसके चलते देशभर में कई जरूरतमंद जहां मदद के लिए तरस रहे हैं, वहीं इन बैंकिंग कंपनियों के ये आर्थिक सितम झेलने के लिए भी विवश दिखाई दे रहे हैं।
जी हां, कोरोना काल में जहां पूरे देश के सामने कई आर्थिक समस्याएं आईं, वहीं देश के हर खासोआम के सामने भी उनकी आर्थिक स्थिति से जुड़ कई समस्याएं पेश आई हैं, जिनके चलते ही सरकार और आरबीआई की ओर से लोगों को राहत प्रदान करने के लिए कई घोषणाएं की गई थीं। इस दौरान जहां मार्च में लॉकडाउन लगाए जाने की वजह से वित्त मंत्रालय और आरबीआई की ओर से पहले 31 मई तक और फिर बाद में 31 अगस्त तक के लिए बैंकिंग सेक्टर से जुड़े बकाया चुकाने के लिए मोरेटोरियम की सुविधा दी गई।
सरकार और आरबीआई की ओर से यह साफ कहा गया था कि इस दौरान बकाया राशि नहीं चुकाने की स्थिति में बैंकिंग और फाइनेंस कंपनियों की ओर से ना तो ग्राहकों को बकाया चुकाने के लिए बाध्य किया जाएगा और ना ही इसके लिए उनकी सिबिल को प्रभावित किया जाएगा। हालांकि इस अवधि के दौरान बकाया पर अतिरिक्त ब्याज राशि लिए जाने का फैसला बैंकों और फाइनेंस कंपनियों पर छोड़ा गया था, जिसका बैंकिंग और फाइनेंस कंपनियों ने बेजा इस्तेमाल किया। लेकिन दूसरी ओर ग्राहकों को जो राहत प्रदान की गई थी, उसका भी इन बैंकिंग और फाइनेंस कंपनियों ने अपने मनमाने तरीके से इस्तेमाल कर पहले से ही ढीली पड़ी ग्राहकों की जेबों पर डाका डालने का काम किया।
इस दौरान बकाया जमा नहीं कराने वाले ग्राहकों पर जहां बाउंस चार्ज लगाया गया, वहीं बकाया जमा नहीं कराने तक प्रत्येक दिन का पैनल चार्ज भी वसूला गया, जिसके चलते लोगों को करीब करीब दोगुनी तक रकम चुकानी पड़ी है। ऐसे में सरकार की ओर से लोगों को दी गई राहत उनके लिए उल्टी आफत का सबब बनने से कतई कम साबित नहीं हुई है।
बात सिर्फ यहीं तक समाप्त नहीं होती है साहब, क्योंकि बकाया राशि पर बाउंस चार्ज और हर दिन का पैनल चार्ज लगाए जाने के नाम पर गरीबों की जेबें काटने के बावजूद इन बैंकिंग और फाइनेंस कंपनियों ने कोरोना काल की राहत अवधि के दौरान बकाया जमा नहीं कराने के लिए ग्राहकों की सिबिल भी इस कदर बिगाड़ी है कि हो सकता है शायद इन ग्राहकों को भविष्य में कोई बैंक या फाइनेंस कंपनी उनकी जरूरत के समय लोन भी ना दें। और यदि कोई बैंक या फाइनेंस कंपनी उन्हें लोन दे भी देगी तो यकीनन वो भी इसके लिए मोटा इंट्रेस्ट रेट लेकर इसका बेजा इस्तेमाल करने से तो काई परहेज नहीं करेेगी।
बात अभी भी खत्म नहीं होती है जनाब, क्योंकि इन बैंकिंग और फाइनेंस कंपनियों का सितम सिर्फ यहीं तक थमने वाला थोड़े ना है, आखिर कोरोना काल का जमकर फायदा उठाते हुए इन्हें भी तो अपनी आर्थिक स्थिति जो सुधारनी है। हां, ये अलग बात है कि इनकी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए भले ही किसी मजबूर और लाचार इंसान की स्थिति बिगड़े तो बिगड़े, कर्ज के बोझ तले दबे किसी किसान की तरह उसके सामने भी सिर्फ खुदकुशी करने का रास्ता ही भले क्यों ना बचे, लेकिन इन बैंकिंग और फाइनेंस कंपनियों को इससे कोई सरोकार नहीं।
खैर, अब अपने दु:खड़े का रोना ये ग्राहक आखिर कहां और किसके सामने जाकर रोये, हार थक कर इन्हीं बैंकिंग और फाइनेंस कंपनियों के कस्टमर केयर पर फोन करना पड़ता है, जहां कोरोना के नाम पर सिमित स्टाफ होने का रोना रोकर पल्ला झाड़ लिया जाता है, जबकि उनके दफ्तरों में जाकर देखा जाए जो भरपूर मात्रा में स्टाफ मौजूद होता है, जो कि हो सकता है शायद अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की योजना बनाने में ही व्यस्त हों और ग्राहकों की अर्थव्यवस्था से कोई मतलब ना हो।
बहरहाल, अब ऐसे में सरकार और आरबीआई खुद ये विचार करे कि कोरोना काल और लॉकडाउन के चलते लोगों को जो राहत उन्होंने प्रदान करने की घोषणा की थी कि सचमुच वही राहत लोगों को मिली है, या फिर उस राहत का असल इस्तेमाल तो बैंकिंग और फाइनेंस कंपनियों ने कर लिया और लोगों के सिर पर आफत का पिटारा फोड़ दिया है, जिससे अपना सिर फुड़वाने के अतिरिक्त लोगों के पास का चारा तक नहीं बचा है।
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