...तो क्या राजस्थान में सचिन पायलट ने बिछा दी है अशोक गहलोत के लिए 'चौबीस की चौसर'?
जयपुर। राजस्थान में पिछले 1 महीेने से भी ज्यादा समय से चला आ रहा सियासी संकट का दौर अब थमता हुआ दिख रहा है। सूबे की अशोक गहलोत सरकार के सामने संकट बनकर खड़े सचिन पायलट और उनके खेमे के विधायकों को आखिरकार सोमवार को पार्टी आलाकमान की दखल के बाद बातचीत के लिए मना लिया गया, जिसके बाद पायलट ने प्रियंका और राहुल गांधी से मुलाकात कर उन्हें अपनी शिकायतों से वाकिफ करवाया। हालांकि आलाकमान की ओर से उनकी 5 मुख्य मांगों में से किसी भी मांग पर कोई सहमति नहीं जताई है, लेकिन उन पर फैसला लेने के लिए तीन सदस्यीय कमेटी बनाई गई है।
बताया जा रहा है कि पायलट के राहुल और प्रियंका गांधी से मुलाकात के बाद राजस्थान में सरकार का संकट फिलहाल टल गया है, लेकिन ये संकट फिलहाल टलता हुआ ही दिख रहा है, पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है। क्योंकि फिलहाल जो हालात नजर आ रहे हैं, उनके मुताबिक, पायलट की कांग्रेस में वापसी जरूर हो रही है, लेकिन फिलहाल उपमुख्यमंत्री पद पर तैनाती को लेकर अभी कोई फैसला नहीं हुआ है। जबकि पायलट और उनके बागी विधायकों को आश्वासन दिया गया है कि उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी। साथ ही बगावत के मुख्य मुद्दे का कोई हल नहीं निकला है। खबरों के मुताबिक, बातचीत में यह तय हो गया है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही रहेंगे, जबकि बगावत इसी मुद्दे को लेकर हुई थी कि गहलोत को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया जाए।
बहरहाल, राजस्थान के सियासी संकट का भले ही पटाक्षेप होता हुआ दिख रहा हो, लेकिन गौर किया जाए तो ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि सियासत के इस पूरे घटनाक्रम से किसे क्या हासिल हुआ है और किसने क्या गंवाया है। राजस्थान के इस सियासी बवंडर में सचिन पायलट ने जहां प्रदेश अध्यक्ष का पद गंवाया है और पार्टी में उनकी विश्वसनीयता को चोट पहुंची है, वहीं सीएम अशोक गहलोत सत्ता बचाने में तो कामयाब हुए ही हैं, साथ ही साथ पार्टी में अपना कद और भी बढ़ा चुके हैं।
वैसे भी गहलोत को जादूगर कोई यूं तो नहीं कहा जाता, आखिर राजनीत के अखाड़े में वे एक मंजे हुए खिलाड़ी जो हैं। गहलोत ने इस बार फिर से अपनी जादूगरी और सियासी कारीगरी का लौहा तो मनवाया ही है, साथ ही विपक्ष को भी ये मैसेज साफ कर दिया कि जो दांव गोवा और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में खेले गए थे, उन दांवों का तोड़ गहलोत अच्छी तरह से जानते हैं। अभी तक के हालात से तो बेशक गहलोत ऐसा करने में कामयाब होते हुए दिख रहे हैं और संभवतया आगे भी हालात गहलोत की जादूगरी के ही वश में रहने वाले दिख रहे हैं।
ऐसे में गहलोत की इस जादूगरी और सियासी कारीगरी को 2024 की तैयारी आखिर क्यों नहीं कहा जाए। यकीनन, राजस्थान के सियासी घटनाक्रम से यही बात तो साफ हुई है कि जिस राजस्थान में गहलोत सरकार को गिराने के लिए येन-केन-प्रकारेण के दांव-पैच खेले गए, गहलोत के पैतरों के सामने उनमें से एक भी नहीं चल पाया और आखिरकार गहलोत ने लोकतंत्र को बचाने में कामयाबी हासिल कर ली।
भले ही लोकतंत्र को बचाने के लिए सूबे की जनता ने सियासी खेल में क्या कुछ नहीं देखा हो। जिस तरह से सभी खेमों के नेता लोकतंत्र की रक्षा करने में दिन रात जुटे रहे, भले ही फाइव स्टार होटलों में, गीत-गजल, चार्टर प्लेन, सांठ-गांठ, जनता की चुनी सरकार को गिराने की योजना, योजना को पूरा करने के लिए धन-बल का इस्तेमाल और ना जाने क्या-क्या किया गया, लेकिन इन सबसे जनता को ये साफ हो गया है कि राजनीति में नैतिकता नाक किसी चीज की कोई जगह नहीं होती है।
खैर, राजस्थान की सियासत से रूबरू कराने वाली इस दिलचस्प सियासी स्क्रिप्ट में कई ट्विस्ट भी देखने को मिले और कई रौचक सीन भी देखने को मिले हैं। सियासत की इस फिल्म में शुमार सभी किरदारों ने अपने अपने रोल तो बखूबी निभाए, लेकिन आखिर में फिल्म वहीं आकर थमती दिख रही है, जहां से कहानी की शुरूआत हुई थी।
जानकार सूत्रों का तो यहां तक मानना है कि राजस्थान के इस सियासी घटनाक्रम से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जिस चतुराई और समझदारी से सामना किया है, उससे उनकी राजनीतिक सूझबूझ पूरे देश में उन्हें कांग्रेस का सबसे मुख्य किरदार साबित कर रही है, जिसे देखते हुए और विपक्षी पार्टियों के मुख्य किरदारों का इस पूरे घटनाक्रम में खुलकर सामने नहीं आने के चलते यहां तक माना जा रहा है कि मौजूदा हालात में सभी राजनीतिक दलों में अशोक गहलोत ही एकमात्र ऐसे किरदार के रूप में दिखाई दे रहे हैं, जो 2024 में होने वाले चुनावों में मोदी से मुकाबले करने का बूता रखते हैं।
बहरहाल, सियासत की इस फिल्म से जहां राजनीति में एक नए सीक्वल की तैयारी होती दिख रही है, वहीं उस सीक्वल में हीरो की भूमिका के लिए अभिनेता भी मिल गया है। राजस्थान की इस सियासी फिल्म की शुरूआत भले की गहलोत और पायलट से शुरू हुई हो, लेकिन कहानी में धीरे धीरे पूरी इंडस्ट्री शुमार होती चली गई, सेंसर बोर्ड भले ही 1 महीने के बाद अपनी भूमिका में आया, लेकिन पूरी कहानी में कुछ किरदार परदे के पीछे ही रहे, जिनका रोल भले ही शायद सबसे अहम हो, लेकिन पूरी कहानी में उनका कहीं पर भी परदे पर नजर नहीं आना कुछ तो इशारा करता ही है।
वैसे आज की आॅडियंस काफी समझदार है और कहानी में कौन हीरो है, कौन विलेन है और कौन सपोर्टिंग रोल निभा रहा है, ये आॅडियंस समझ सकती है। ऐसे में राजस्थान की इस सियासी फिल्म में किसने कौनसा रोल प्ले किया है, इस बात का खुलासा तो 2024 में आने वाली फिल्म की सीक्वेंस में आॅडियंस ही बताने वाली है, जिसके लिए फिलहाल उसकी रिलीज से पहले उसकी पटकथा लिखे जाने और सभी किरदारों के लिए अभिनेता साइन किए जाने का इंतजार ही करना होगा।
बताया जा रहा है कि पायलट के राहुल और प्रियंका गांधी से मुलाकात के बाद राजस्थान में सरकार का संकट फिलहाल टल गया है, लेकिन ये संकट फिलहाल टलता हुआ ही दिख रहा है, पूरी तरह से खत्म नहीं हुआ है। क्योंकि फिलहाल जो हालात नजर आ रहे हैं, उनके मुताबिक, पायलट की कांग्रेस में वापसी जरूर हो रही है, लेकिन फिलहाल उपमुख्यमंत्री पद पर तैनाती को लेकर अभी कोई फैसला नहीं हुआ है। जबकि पायलट और उनके बागी विधायकों को आश्वासन दिया गया है कि उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी। साथ ही बगावत के मुख्य मुद्दे का कोई हल नहीं निकला है। खबरों के मुताबिक, बातचीत में यह तय हो गया है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ही रहेंगे, जबकि बगावत इसी मुद्दे को लेकर हुई थी कि गहलोत को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया जाए।
बहरहाल, राजस्थान के सियासी संकट का भले ही पटाक्षेप होता हुआ दिख रहा हो, लेकिन गौर किया जाए तो ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि सियासत के इस पूरे घटनाक्रम से किसे क्या हासिल हुआ है और किसने क्या गंवाया है। राजस्थान के इस सियासी बवंडर में सचिन पायलट ने जहां प्रदेश अध्यक्ष का पद गंवाया है और पार्टी में उनकी विश्वसनीयता को चोट पहुंची है, वहीं सीएम अशोक गहलोत सत्ता बचाने में तो कामयाब हुए ही हैं, साथ ही साथ पार्टी में अपना कद और भी बढ़ा चुके हैं।
वैसे भी गहलोत को जादूगर कोई यूं तो नहीं कहा जाता, आखिर राजनीत के अखाड़े में वे एक मंजे हुए खिलाड़ी जो हैं। गहलोत ने इस बार फिर से अपनी जादूगरी और सियासी कारीगरी का लौहा तो मनवाया ही है, साथ ही विपक्ष को भी ये मैसेज साफ कर दिया कि जो दांव गोवा और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में खेले गए थे, उन दांवों का तोड़ गहलोत अच्छी तरह से जानते हैं। अभी तक के हालात से तो बेशक गहलोत ऐसा करने में कामयाब होते हुए दिख रहे हैं और संभवतया आगे भी हालात गहलोत की जादूगरी के ही वश में रहने वाले दिख रहे हैं।
ऐसे में गहलोत की इस जादूगरी और सियासी कारीगरी को 2024 की तैयारी आखिर क्यों नहीं कहा जाए। यकीनन, राजस्थान के सियासी घटनाक्रम से यही बात तो साफ हुई है कि जिस राजस्थान में गहलोत सरकार को गिराने के लिए येन-केन-प्रकारेण के दांव-पैच खेले गए, गहलोत के पैतरों के सामने उनमें से एक भी नहीं चल पाया और आखिरकार गहलोत ने लोकतंत्र को बचाने में कामयाबी हासिल कर ली।
भले ही लोकतंत्र को बचाने के लिए सूबे की जनता ने सियासी खेल में क्या कुछ नहीं देखा हो। जिस तरह से सभी खेमों के नेता लोकतंत्र की रक्षा करने में दिन रात जुटे रहे, भले ही फाइव स्टार होटलों में, गीत-गजल, चार्टर प्लेन, सांठ-गांठ, जनता की चुनी सरकार को गिराने की योजना, योजना को पूरा करने के लिए धन-बल का इस्तेमाल और ना जाने क्या-क्या किया गया, लेकिन इन सबसे जनता को ये साफ हो गया है कि राजनीति में नैतिकता नाक किसी चीज की कोई जगह नहीं होती है।
खैर, राजस्थान की सियासत से रूबरू कराने वाली इस दिलचस्प सियासी स्क्रिप्ट में कई ट्विस्ट भी देखने को मिले और कई रौचक सीन भी देखने को मिले हैं। सियासत की इस फिल्म में शुमार सभी किरदारों ने अपने अपने रोल तो बखूबी निभाए, लेकिन आखिर में फिल्म वहीं आकर थमती दिख रही है, जहां से कहानी की शुरूआत हुई थी।
जानकार सूत्रों का तो यहां तक मानना है कि राजस्थान के इस सियासी घटनाक्रम से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जिस चतुराई और समझदारी से सामना किया है, उससे उनकी राजनीतिक सूझबूझ पूरे देश में उन्हें कांग्रेस का सबसे मुख्य किरदार साबित कर रही है, जिसे देखते हुए और विपक्षी पार्टियों के मुख्य किरदारों का इस पूरे घटनाक्रम में खुलकर सामने नहीं आने के चलते यहां तक माना जा रहा है कि मौजूदा हालात में सभी राजनीतिक दलों में अशोक गहलोत ही एकमात्र ऐसे किरदार के रूप में दिखाई दे रहे हैं, जो 2024 में होने वाले चुनावों में मोदी से मुकाबले करने का बूता रखते हैं।
बहरहाल, सियासत की इस फिल्म से जहां राजनीति में एक नए सीक्वल की तैयारी होती दिख रही है, वहीं उस सीक्वल में हीरो की भूमिका के लिए अभिनेता भी मिल गया है। राजस्थान की इस सियासी फिल्म की शुरूआत भले की गहलोत और पायलट से शुरू हुई हो, लेकिन कहानी में धीरे धीरे पूरी इंडस्ट्री शुमार होती चली गई, सेंसर बोर्ड भले ही 1 महीने के बाद अपनी भूमिका में आया, लेकिन पूरी कहानी में कुछ किरदार परदे के पीछे ही रहे, जिनका रोल भले ही शायद सबसे अहम हो, लेकिन पूरी कहानी में उनका कहीं पर भी परदे पर नजर नहीं आना कुछ तो इशारा करता ही है।
वैसे आज की आॅडियंस काफी समझदार है और कहानी में कौन हीरो है, कौन विलेन है और कौन सपोर्टिंग रोल निभा रहा है, ये आॅडियंस समझ सकती है। ऐसे में राजस्थान की इस सियासी फिल्म में किसने कौनसा रोल प्ले किया है, इस बात का खुलासा तो 2024 में आने वाली फिल्म की सीक्वेंस में आॅडियंस ही बताने वाली है, जिसके लिए फिलहाल उसकी रिलीज से पहले उसकी पटकथा लिखे जाने और सभी किरदारों के लिए अभिनेता साइन किए जाने का इंतजार ही करना होगा।
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