जानिए कौन हैं रायसीना की रेस में आगे निकलने वाली द्रौपदी मुर्मू
नई दिल्ली। रायसीना की रेस में आगे निकलने वाली द्रौपदी मुर्मू आजादी के 75 साल बाद भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति बनने की ओर अग्रसर है। संसद के कमरा नम्बर 63 में देश के अगले राष्ट्रपति का नाम तय होने के लिए वोटों की गिनती की जा रही है। ऐसे में अब महज कुछ देर में राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे सबके सामने होंगे और देश के 15वें राष्ट्रपति का नाम भी तय हो जाएगा। राष्ट्रपति पद के लिए NDA उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू और विपक्ष के साझा उम्मीदवार यशवंत सिन्हा के बीच सीधा मुकाबला है। एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू अगर इस मुकाबले में सफल होती हैं, तो वह देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति होंगी। ऐसे में आइए जानते हैं कि रायसीना की रेस में आगे निकलने वाली द्रौपदी मुर्मू आखिर कौन हैं।
आजादी के 75 साल बाद भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति बनने की ओर अग्रसर हो रहीं Draupadi Murmu साल 2015 से 2021 के बीच झारखंड की राज्यपाल भी रह चुकी हैं। ऐसे में उनका नाम देश की पहली आदिवासी महिला राज्यपाल की फेहरिस्त में शुमार है। 20 जून 1958 में संथाल समुदाय में जन्मीं द्रौपदी मुर्मू की पढ़ाई-लिखाई भुवनेश्वर के रमादेवी वुमेंस कॉलेज से हुई है, जहां से उन्होंने स्नातक किया है। द्रौपदी मुर्मू का विवाह श्याम चरण मुर्मू के साथ हुआ, जिनके तीन संतानें (दो बेटे और एक बेटी) हुईं। मुर्मू का जीवन व्यक्तिगत त्रासदियों से भरा हुआ रहा है, क्योंकि उन्होंने अपने पति और दोनो बेटों को खो दिया है। अब उनके एक बेटी है, जिसका नाम इतिश्री मुर्मू है। द्रौपदी मुर्मू की बेटी इतिश्री का विवाह गणेश हेम्ब्रम से हुआ है।
साल 1979 में भुवनेश्वर के रमादेवी महिला कॉलेज से बीए पास करने वाली द्रौपदी मुर्मू ने अपने पेशेवर करियर की शुरुआत ओड़िशा सरकार के लिए क्लर्क की नौकरी से की। तब वह सिंचाई और ऊर्जा विभाग में जूनियर सहायक थीं, बाद के सालों में वह शिक्षक भी रहीं। उन्होंने रायरंगपुर के श्री अरविंदो इंटिग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर में मानद शिक्षक के तौर पर पढ़ाया। नौकरी के दिनों में उनकी पहचान एक मेहनती कर्मचारी के तौर पर थी।
बेहद पिछड़े और दूरदराज के जिले से ताल्लुक रखने वालीं द्रौपदी मुर्मू ने 1997 में रायरंगपुर नगर पंचायत में एक पार्षद के रूप में अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया और वे वर्ष 2000 में ओडिशा सरकार में मंत्री बनीं। बाद में उन्होंने 2015 में झारखंड के राज्यपाल पद की जिम्मेदारी भी संभाली। रायरंगपुर से दो बार विधायक रहीं मुर्मू ने 2009 में तब भी अपनी विधानसभा सीट पर कब्जा जमाया था, जब बीजद (BJD) ने राज्य के चुनावों से कुछ हफ्ते पहले भाजपा से नाता तोड़ लिया था, जिसमें मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी ने जीत दर्ज की थी।
मुर्मू को 2007 में ओडिशा विधानसभा द्वारा वर्ष के सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनके पास ओडिशा सरकार में परिवहन, वाणिज्य, मत्स्य पालन और पशुपालन जैसे मंत्रालयों को संभालने का अनुभव है। मुर्मू बीजेपी की ओडिशा इकाई की अनुसूचित जनजाति मोर्चा की उपाध्यक्ष और बाद में अध्यक्ष भी रहीं। उन्हें 2013 में बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी (एसटी मोर्चा) के सदस्य के रूप में भी नामित किया गया था।
द्रौपदी मुर्मू दो बार बीजेपी एसटी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य भी रह चुकी हैं। साल 2002 से 2009 और साल 2013 से अप्रैल 2015 तक इस मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य रहीं। इसके बाद वह झारखंड की राज्यपाल मनोनीत कर दी गईं और बीजेपी की सक्रिय राजनीति से अलग हो गईं। यहां से सेवानिवृति के बाद वे अपने गृह राज्य ओड़िशा के मयूरभंज जिले के रायरंगपुर में रहती हैं। यह उनके पैतृक गांव बैदापोसी का प्रखंड मुख्यालय है।
No comments