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"लो जी लगने लगी लंका" : ...कइयों को बेरोजगार कर साहब हो लिए 'नम्बर-1'?

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वैसे ये कोई 'नई नवेली' बात तो नहीं है, क्योंकि साहब को हमेशा से ही 'नम्बर वन' का 'तगड़ा वाला' चस्का रहा है, लेकिन अब जब 'बात निकली है तो फिर दूर तलक जाएगी...' वाली गजल कानों में गूंजती सुनाई पड़ रही है। मुद्दा सिर्फ गजलों का ही नहीं है साहब, जमाने में और भी गम है महोब्बत के सिवा। अब आज के जमाने में काम-धंधे की बात भी कोई कम ग़मों वाली नहीं रही है, और जब बात मीडिया जगत की हो तो फिर उसमें तो किसी चीज की कोई सीमा ही नहीं है। आखिर इसमें भी तो अब खुद को सबसे आगे और सबसे पहले रखने की हौड मची है। और तो और इस हौड में 'जमीर' को तो बेचारे को फुटपाथ पर भी जगह नसीब नहीं होती। हां, चापलूसों के लिए 'तोहफा कबूल हो जहांपनाह' वाली बात भी छोटी सी बात होने लगी है, सो उनके लिए तरक्की की राहें हमेशा और सब जगह खुली रहती है, और जो सिद्धान्तों की बात करे, उसे हटा दो परे। 

बात जब मीडिया जगत की हो तो वहां तो असम्भावनाओं का दौर आपसे भी ज्यादा तेज स्पीड में दौड़ता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि कभी समाजसेवा का कार्य माने जाने वाली पत्रकारिता अब महज व्यापार बन चुकी है। राजस्थान में तो इसके हालात काफी 'सराहनीय' है, जहां 'जितना ज्यादा बिजनैस उतने ही नम्बर वन' वाली बात चरितार्थ होती दिखने लगी है। अब इस नम्बर वन के तमगे को पाने के लिए क्या-क्या जतन करने पड़े और कितनों को दरकिनार करना पड़े ये अलग बात है। राजस्थान के मीडिया जगत में भी इन दिनों लोगों को बाय-बाय कहने का मौसम परवान पर है।

मीडिया जगत की खबरों के गलियारों से निकलने वाली चर्चाओं के मुताबिक, News 18 Rajasthan के जयपुर मुख्‍यालय में जरुरत से ज्‍यादा रिपोर्टर्स को ट्रांसफर अथवा अलविदा कहे जाने की तैयारियों को लेकर सरगर्मियां तेज है। दरअसल, विधानसभा एवं लोकसभा चुनाव के बाद विभिन्न संस्थानों के प्रबंधन अब इस बात पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं किस तरह से कॉस्ट-कटिंग की जाए और बताया गया है कि न्‍यूज 18 प्रबंधन जल्‍दी ही जरुरत से ज्‍यादा रिपोर्टर्स के भाग्‍य का फैसला करेगा, जिसमें कुछ को वहां ट्रांसफर किया जा सकता है, जहां स्टाफ कम है और कुछ को हैदराबाद मुख्यालय में शिफ्ट किया जा सकता है। साथ ही कुछ को कार्य प्रदर्शन में कमजोर होने का हवाला देते हुए बाय-बाय भी किया जा सकता है।

दूसरी ओर, First India News में तो छंटनी की तलवार चल भी चुकी है, जिसमें 32 मीडियाकर्मी निशाना बने हैं। इनमें से कई मीडियाकर्मी ऐसे भी हैं, जो यहां शुरुआत से कार्य कर रहे थे और अब तक के अपने कार्य प्रदर्शन से चैनल को अन्य चैनलों से मुकाबले की स्थिति में बरकरार रखे हुए थे। दरअसल, यहां करीब सवा साल पहले एक बड़ा फेरबदल हुआ था और राजस्थान के एक मीडिया महारथी ने अपनी पूरी टीम के साथ एंट्री की थी, उसके बाद चैनल ने एकदम से जो रफ्तार पकड़ी, वो प्रदेश में जगह-जगह बैनर-होर्डिंग्स और कई शहरों के ऑटो-रिक्शाओं पर पोस्टर्स की शक्ल में जा पहुंची और चैनल हो गया नंबर-1 वाली फेहरिस्त में शुमार। चैनल की वो रफ्तार अब तक है बरकरार। लेकिन इस रफ्तार में अब आर्थिक स्थिति रोड़ा बनती नजर आने लगी है, सो कॉस्ट-कटिंग फार्मूला ईजाद किया गया और छंटनी की तलवार करके तैयार, कर डाला एक साथ 32 को उस पार।

छंटनी की इस प्रकिया में कुछ मीडियाकर्मी ऐसे भी हैं, जो चैनल की शुरुआत से ही अपने कार्य प्रदर्शन के बूते पर अपना घर-परिवार चलाने के साथ ही चैनल को भी बखूबी चलाने में अपना योगदान दे रहे थे, लेकिन अब जबकि उनको एकदम से बिना किसी नोटिस के बाय-बाय कह दिया गया है तो उनके सामने रोजगार और अपना घर-परिवार चलाने का संकट मुंहबाहे खड़ा हो गया है। छंटनी की भेंट चढ़ने वालों में कई तो ऐसे भी हैं, जो अपने परिवार में इकलौते ही कमाने वाले हैं और उनकी पगार से ही उनके परिवार, बीवी-बच्चों अथवा बीमार पति की देखरेख चल रही थी। हालांकि इनको बिना नोटिस दिए निकाले जाने के बदले में एक महीने की एक्स्ट्रा सैलेरी जरूर दी गई है, लेकिन साहब जरा सोचिए कि उस बेटे के सामने अचानक से जो स्थिति आन खड़ी हुई है, उस स्थिति में वह कैसे अपने बूढ़े मां-बाप को जाकर यह बताए कि अब उसके पास रोज घर से निकलकर काम पर जाने का कोई बहाना तक नहीं रहा है, कैसे वो महिलाकर्मी अपने उस बीमार पति को जाकर ये बताए कि जिस पगार से वो उसकी देख-रेख कर रही थी और अपने बच्चों को पाल रही थी, वही पगार अब उसे नहीं मिल पाएगी।

ये तो महज दो उदाहरण मात्र हैं, जमाने मे और भी कई परिस्थितियां लोगों के सामने पहाड़ जैसा संकट बनकर खड़ी है। ऐसे में उन लोगों को, जिन्होंने सवा साल पहले जो एक बड़ा फेरबदल हुआ था, उससे पहले तक इस चैनल को हर हाल और हर स्थिति का सामना करके भी उस मुकाम तक पहुंचाया, जिसकी बदौलत ही सवा साल पहले वो बड़ा फेरबदल हुआ था, उन्हीं लोगों में शुमार कई लोगों को एक पल में बेगाना कर दिया जाना ठीक वैसा ही है, जैसे किसी के द्वारा दिन-रात पसीना बहाकर तैयार किए गए उसके सपनों के आशियाने से ही उसको निकाल दिया जाना। ऐसी स्थिति में जिसके साथ जो बीत रही है, सिर्फ वही अपने अन्तर की पीड़ा को जान और समझ सकता है, वरना जमाने में कई जान अनजान बने बैठी है।

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