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VIDEO ; रशियन स्लीप एक्सपेरिमेंट : दुनिया में अब तक का सबसे खौफनाक एक्सपेरिमेंट

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इंसान ने जब से विज्ञान को जानना और समझना शुरू किया, तभी से कई एक्सपेरिमेंट लगातार किये जाते रहे हैं। कई एक्सपेरिमेंट सफल हुए, तो कई फेल भी हुए। लेकिन जिस तरह से कई साइंस फिक्शन फिल्मों में दिखाया जाता है, ठीक उसी तरह से एक एक्सपेरिमेंट ऐसा भी किया गया, जो दुनिया का अब तक का सबसे खौफनाक एक्सपेरिमेंट रहा है। आज हम आपको उसी खौफनाक एक्सपेरिमेंट के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे जानकर हर किसी की रूह कांप उठे। इंसान को जीता-जागता हैवान बना देने उस खौफनाक एक्सपेरिमेंट के बाद पूरी दुनिया में दोबारा ऐसा एक्सपेरिमेंट कभी नहीं किया गया।

जरा सोचिए कि आप कितने दिनों तक बिना सोये रह सकते हैं? शायद 2-4 या फिर ज्यादा से ज्यादा 5 या 6 दिनों तक। लेकिन अगर आपको 30 दिन बिना सोये गुजारने के लिए कहा जाए तो.... शायद, यह बात सुनकर ही आप घबरा जाएं, लेकिन सन 1940 में ऐसा ही एक प्रयोग किया गया था। दरअसल, यह वर्ल्डवार 2nd का समय था, जब दुनियाभर की सेनाओं में दिन-रात लड़ाई चल रही थी। ऐसे में सैनिकों को ज्यादा से ज्यादा दिनों तक बिना सोये जंग में मैदान में मुस्तैद रखना एक चुनौती था। इसके लिए सोवियत यूनियन ने युद्ध मे बंदी बनाए हुए पांच अलग-अलग उम्र के कैदियों पर एक प्रयोग किया।

'रशियन स्लीप एक्सपेरिमेंट' नाम के इस प्रयोग में सोवियत यूनियन ने इन पांचों कैदियों को एक कमरे में बंद रखा और उनसे कहा गया कि अगर वे बिना सोये 30 दिन गुजार देते हैं, तो उन्हें आजाद कर दिया जाएगा। पूरी तरह से बंद कमरे में इन कैदियों के लिए खाने के लिए भोजन, पीने के लिए पानी और पढ़ने के लिए कुछ किताबें जैसी सभी सुविधाएं भी रखी गई, लेकिन उनके सोने या बैठने की कोई जगह नहीं रखी गई थी। इसके अलावा इन कैदियों पर नजर रखने के लिए कमरे में दो जगह पर वन-वे मिरर लगाए गए, क्योंकि उस समय CCTV कैमरे नहीं हुआ करते थे। कैदियों को नींद ना आए, इसके लिए कमरे में ऑक्सीजन के साथ एक एक्सपेरिमेंटल गैस धीरे-धीरे छोड़ी जाती थी। ये गैस एक प्रकार का केमिकल स्टीयूमलेंट थी, जो उन्हें जगाए रख सके और इसी को लेकर यह प्रयोग किया जा रहा था।

पांचों कैदियों को कमरे से बंद रखे जाने के बाद शुरू के 4-5 दिनों तक सब कुछ नॉर्मल रहा, लेकिन 5वें दिन के बाद इन कैदियों की बेचैनी अचानक बढ़ने लग गई थी। 9वें दिन उनमें से एक कैदी ने अपना मानसिक संतुलन खो दिया और वह कई घंटों तक चिल्लाता रहा, जिसकी वजह से उसके गले के वोकल कॉर्ड फट गए। धीरे-धीरे उन सभी कैदियों की हालत एक जैसी होने लगी, जो गैस उनके कमरे में छोड़ी जा रही थी, उसका असर सारे कैदियों पर दिखने लगा और वह सभी अपना मानसिक संतुलन खोने लगे। कैदियों ने किताबों के पन्ने फाड़कर अपने ही मलमूत्र से वन-वे मिरर पर चिपका दिए, ताकि उन्हें कोई देख नहीं पाए।

जबकि, दूसरी ओर से इन कैदियों पर नजर रखने वाले रिसर्चर ने धीरे-धीरे गैस की मात्रा बढ़ाना शुरू कर दिया, जिसके चलते कुछ दिनों तक उस कमरे से अजीब तरीके से बड़बड़ाने और चिल्लाने की आवाज़ें आती रहीं, लेकिन बाद में ये सभी आवाजें बंद हो गईं। हालांकि कमरे में हो रहा ऑक्सीजन का इस्तेमाल उन सभी कैदियों के जिंदा होने के संकेत भी रिसर्चर को दे रहा था, लेकिन लगातार कुछ दिनों तक कमरे से कोई भी आवाज़ नहीं आई तो रिसर्चर्स ने गैस बंद कर अदंर जाने का फैसला किया। जैसे ही उन्होंने कैदियों को बताया कि वह सभी अंदर आ रहे हैं तो बेहद खौफनाक आवाज़ में एक कैदी ने यह कहते हुए उन्हें अंदर आने से मना कर दिया कि अब वो आज़ाद नहीं होना चाहते, यहीं रहना चाहते हैं। इसलिए कमरे में गैस वापिस शुरू कर दी जाए।

यह बात सुनकर घबराए हुए रिसर्चर जब उस कमरे में दाखिल हुए तो कमरे के अंदर का नज़ारा रौंगटे खड़े करने वाला था। क्योंकि, जो खाना कैदियों को दिया जा रहा था, उन्होंने उसे छुआ तक नहीं था, फर्श पर चारों ओर खून फैला हुआ था और कैदियों के कटे हुए अंग पड़े हुए थे, जिसे वो बाद में खा सके। असल में ये कैदी एक-दूसरे को नहीं, बल्कि खुद के शरीर को ही खा रहे थे। यहां तक कि एक कैदी के तो हाथ-पांवों की हड्डियां तक नजर आने लगी थी।

कमरे के अंदर का यह दिल दहलाने देने वाला नज़ारा देखकर रिसर्चर के होश उड़ गएं, जिसके बाद उन कैदियों को इलाज के लिए कमरे से बाहर निकाला गया, लेकिन सारे के सारे कैदी उसी कमरे में रहने के लिए छटपटाने और चिल्लाने लगे। जैसे-तैसे कैदियों को ऑपरेशन के लिए बाहर निकला गया, लेकिन कैदियों पर उस गैस का इस कदर असर हुआ कि ऑपरेशन के लिए जब उनको मॉर्फिन के 8 इंजेक्शन लगा दिए गए, तब भी उन पर इसका कोई असर नहीं हुआ। हालांकि, इस ऑपरेशन के दौरान 3 कैदियों की जान चली गई और बाकी दो कैदियों को वापस उसी कमरे में बंद कर दिया गया।

कैदियों की यह भयावह हालत देख रिसर्चर बेहद डर गए थे और इस एक्सपेरिमेंट को तुरंत ही रोकना चाहते थे, लेकिन चीफ कमांडर के आदेश की वजह से वह ऐसा कर नहीं सकें। इस बार उन कैदियों को मॉनिटर करने के लिए तीन रिसर्चर को भी उनके साथ कमरे में रखा गया, लेकिन, कमरे में उन कैदियों के हरकतों को देख एक रिसर्चर इतना डर गया कि उसने बाकी बचे दोनों कैदियों को गोली मार दी। इस घटना के बाद इस एक्सपेरिमेंट को यहीं रोक दिया गया।

यह तो हुई इस खौफनाक एक्सपेरिमेंट की बात, लेकिन सवाल उठता है कि इस एक्सपेरिमेंट का खुलासा आखिर कैसे हुआ। दरअसल, साल 2009 में क्रीपिपास्ता विकि नाम की एक वेबसाइट ने इस एक्सपेरिमेंट को पूरी दुनिया के सामने रखा। इस प्रयोग का खुलासा करते हुए ऑर्टिकल में यह भी लिखा गया कि इस प्रयोग को जानबूझकर पूरी दुनिया से छिपाया गया है। हालांकि, इस एक्सपेरिमेंट के बारे में रूस ने ऐसे किसे प्रयोग किए जाने की बात से साफ इंकार कर दिया, जिसके बाद इस प्रयोग और वेबसाइट पर छपे आर्टिकल की सत्यता पर अभी भी संदेह बना हुआ है।

इस संदेह के कई कारण भी है, क्योंकि आर्टिकल में इस बात का जिक्र किया गया कि ऑपरेशन के वक्त बचे हुए दो कैदियों के दिल में हवा चली गई थी, लेकिन उसके बावजूद वह दोनों जिंदा रहे। जबकि हकीकत मेंऐसा होना नामुमकिन है। क्योंकि, किसी भी व्यक्ति के दिल में हवा का प्रवेश जानलेवा होता है। दिल में हवा का प्रवेश होते ही व्यक्ति हॉर्ट अटैक से मर सकता है। दूसरा कारण यह है कि दुनिया में अभी तक ऐसा कोई स्टीयूमिलेंट ड्रग नहीं बना, जो किसी भी व्यक्ति के व्यवहार को इस कदर प्रभावित करे या व्यक्तित्व को इस कदर बदल दे कि वह एक आम इंसान से जीता-जागता दरिंदा बन जाए।

बहरहाल, ऐसे में कई सालों बाद तक जब इस एक्सपेरिमेंट को लेकर कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला तो इसे किसी लेखक की कल्पना मानकर भुला दिया गया। लेकिन, आज भी यह सवाल बरकरार है कि क्या यह खौफनाक एक्सपेरिमेंंट सचमुच किसी लेखक की कल्पना थी या इंसानियत को हिलाकर रख देने वाला एक कड़वा सच! और इस सवाल का जवाब बरसों बीत जाने के बाद आज भी किसी को नहीं मिल पाया और ना ही मिलने की उम्मीद की जा सकती है।

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