फिर भारत बंद : ...तो क्यों न सरकारें जनता के 'इशारे' को समझने की कोशिश करें
सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी-एसटी एक्ट में संशोधन संबंधी आदेश के बाद 2 अप्रैल को दलित संगठनों के आह्वान पर भारत बंद किया गया था। वहीं आरक्षण के विरोध में सवर्ण समाज की ओर से सोशल मीडिया पर वायरल हुई अपील के बाद आज एक बार फिर से भारत बंद किया गया है, जिसके चलते राजधानी जयपुर में कमोबेश सभी बाजार बंद दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में 2 अप्रैल को किए गए भारत बंद की अपेक्षा आज किया गया भारत बंद काफी असरदार दिखाई दे रहा है। वहीं संगठनों के आह्वान एवं लाठी के जोर पर कराए गए बंद पर आज सोशल मीडिया की अपील भारी पड़ती दिख रही है।
एक ओर जहां, 2 अप्रैल को दलित संगठनों के आह्वान पर किए गए भारत बंद के दौरान प्रदर्शन कर रहे लोगों ने लाठी के जोर पर बाजार बंद करवाए थे और इस दौरान देशभर में तोड़फोड़, आगजनी और हिंसक झड़पें देखने को मिली थी। वहीं दूसरी ओर, आज हो रहे भारत बंद के दौरान दुकानदारों ने स्वत: ही अपनी स्वयं की इच्छा से दुकानें बंद रखी है। इसके साथ ही बाजारों में पूरी तरह से शांति नजर आ रही है। ऐसे में 2 अप्रैल के भारत बंद और आज के भारत बंद में सबसे बड़ा फर्क अभी तक यही दिखाई दे रहा है कि आज शांतिपूर्ण लेकिन सफल भारत बंद नजर आ रहा है।
गौरतलब है कि जहां पिछली बार 2 अप्रैल को भारत बंद के लिए देशभर के दलित संगठनों की ओर से बंद का आह्वान किया गया था, वहीं आज हो रहे बंद के लिए किसी भी व्यक्ति अथवा संगठन की ओर से प्रत्यक्ष रूप से सामने आकर किसी तरह का कोई आह्वान नहीं किया गया। जबकि इसके लिए महज सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक मैसेज के जरिये की गई अपील को लेकर ही आज बंद रखा गया है। ऐसे में सोशल मीडिया की ताकत का अंदाजा बड़ी ही सहजता से लगाया जा सकता है।
इन सबसे इतर, 2 अप्रैल और आज के बंद में जो सबसे काबिलेगौर बात है वो ये है कि लोगों द्वारा आज के बंद को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन किया जाना अपने आप में एक बड़ी बात है। साथ ही सरकारों को भी इस बात को समझने की आवश्यकता है कि लोगों—दुकानदारों द्वारा आज के बंद का समर्थन किया जाना किस बात का इशारा करता है। आज के बंद का उद्देश्य जैसा कि सोशल मीडिया में वायरल हुई अपील में किया गया था वो आरक्षण के खिलाफ है। ऐसे में जाहिर सी बात है कि जनता ने आज आरक्षण के विरोध में बंद को अपना समर्थन दिया है। तो क्यों न तमाम सरकारें जनता के इशारे को समझने की कोशिश करें।
एक ओर जहां, 2 अप्रैल को दलित संगठनों के आह्वान पर किए गए भारत बंद के दौरान प्रदर्शन कर रहे लोगों ने लाठी के जोर पर बाजार बंद करवाए थे और इस दौरान देशभर में तोड़फोड़, आगजनी और हिंसक झड़पें देखने को मिली थी। वहीं दूसरी ओर, आज हो रहे भारत बंद के दौरान दुकानदारों ने स्वत: ही अपनी स्वयं की इच्छा से दुकानें बंद रखी है। इसके साथ ही बाजारों में पूरी तरह से शांति नजर आ रही है। ऐसे में 2 अप्रैल के भारत बंद और आज के भारत बंद में सबसे बड़ा फर्क अभी तक यही दिखाई दे रहा है कि आज शांतिपूर्ण लेकिन सफल भारत बंद नजर आ रहा है।
गौरतलब है कि जहां पिछली बार 2 अप्रैल को भारत बंद के लिए देशभर के दलित संगठनों की ओर से बंद का आह्वान किया गया था, वहीं आज हो रहे बंद के लिए किसी भी व्यक्ति अथवा संगठन की ओर से प्रत्यक्ष रूप से सामने आकर किसी तरह का कोई आह्वान नहीं किया गया। जबकि इसके लिए महज सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक मैसेज के जरिये की गई अपील को लेकर ही आज बंद रखा गया है। ऐसे में सोशल मीडिया की ताकत का अंदाजा बड़ी ही सहजता से लगाया जा सकता है।
इन सबसे इतर, 2 अप्रैल और आज के बंद में जो सबसे काबिलेगौर बात है वो ये है कि लोगों द्वारा आज के बंद को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन किया जाना अपने आप में एक बड़ी बात है। साथ ही सरकारों को भी इस बात को समझने की आवश्यकता है कि लोगों—दुकानदारों द्वारा आज के बंद का समर्थन किया जाना किस बात का इशारा करता है। आज के बंद का उद्देश्य जैसा कि सोशल मीडिया में वायरल हुई अपील में किया गया था वो आरक्षण के खिलाफ है। ऐसे में जाहिर सी बात है कि जनता ने आज आरक्षण के विरोध में बंद को अपना समर्थन दिया है। तो क्यों न तमाम सरकारें जनता के इशारे को समझने की कोशिश करें।
— पवन टेलर

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