सरकार के विवादित विधेयक के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर
जयपुर। राजस्थान सरकार द्वारा लागू किए जाने वाले सरकारी अफसरों व लोकसेवकों के खिलाफ मामला दायर कराने से पूर्व अनुमति लिए जाने के विवादित विधेयक के खिलाफ राजस्थान हाईकोर्ट में आज तीन जनहित याचिकाएं (पीआईएल) दायर हुई है। वहीं हाई कोर्ट ने इन याचिकाओं पर जल्द सुनवाई किए जाने से इन्कार कर दिया है।
सरकारी अफसरों व लोकसेवकों को कथित तौर पर संरक्षण प्रदान करने वाला बताए जा रहे इस विधेयक को लेकर हाईकोर्ट में दायर याचिकाओं के जरिये इस अध्यादेश को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता श्रृंजना श्रेष्ठ व अधिवक्ता पीसी भंडारी ने इस अध्यादेश को पीआईएल के जरिये चुनौती दी है। वहीं अधिवक्ता भगवत गौड़ की ओर से याचिका दायर कर अध्यादेश रद्द करने की गुहार की गई है।
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया सीआरपीसी और आईपीसी में संशोधन के लिए विधानसभा में बिल पेश हो चुका है। ऐसे में याचिका पर जल्दी सुनवाई की जाए। इस पर न्यायाधीश अजय रस्तोगी और न्यायाधीश दीपक माहेश्वरी की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता की दलील को खारिज करते हुए याचिका को नियमित सुनवाई की प्रक्रिया के तहत ही सूचीबद्ध करने को कहा है। अदालत अब 27 अक्टूबर को याचिका पर सुनवाई करेगी।
गौरतलब है कि राज्य सरकार ने हाल ही में एक अध्यादेश जारी कर दंड़ प्रक्रिया संहिता में संशोधन करने और आईपीसी में धारा 228बी जोडने का प्रावधान किया है। इसके चलते किसी भी लोकसेवक के खिलाफ केस दर्ज कराने से पहले सरकार से अभियोजन स्वीकृति लेने की बाध्यता रखी गई है। स्वीकृति देने की समय सीमा 180 दिन तय है।
इसके अलावा अभी तक राजपत्रित अधिकारी को ही लोकसेवक माना जाता था, लेकिन अध्यादेश में सरकार ने लोक सेवक का दायर भी बढ़ा दिया है। अभियोजन स्वीकृति से पहले संबंधित लोक सेवक का नाम किसी भी मीडिया संस्थान अथवा व्यक्ति द्वारा सार्वजनिक करने पर दो साल की सजा का प्रावधान भी अध्यादेश में किया गया है।
सरकारी अफसरों व लोकसेवकों को कथित तौर पर संरक्षण प्रदान करने वाला बताए जा रहे इस विधेयक को लेकर हाईकोर्ट में दायर याचिकाओं के जरिये इस अध्यादेश को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता श्रृंजना श्रेष्ठ व अधिवक्ता पीसी भंडारी ने इस अध्यादेश को पीआईएल के जरिये चुनौती दी है। वहीं अधिवक्ता भगवत गौड़ की ओर से याचिका दायर कर अध्यादेश रद्द करने की गुहार की गई है।
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया सीआरपीसी और आईपीसी में संशोधन के लिए विधानसभा में बिल पेश हो चुका है। ऐसे में याचिका पर जल्दी सुनवाई की जाए। इस पर न्यायाधीश अजय रस्तोगी और न्यायाधीश दीपक माहेश्वरी की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता की दलील को खारिज करते हुए याचिका को नियमित सुनवाई की प्रक्रिया के तहत ही सूचीबद्ध करने को कहा है। अदालत अब 27 अक्टूबर को याचिका पर सुनवाई करेगी।
गौरतलब है कि राज्य सरकार ने हाल ही में एक अध्यादेश जारी कर दंड़ प्रक्रिया संहिता में संशोधन करने और आईपीसी में धारा 228बी जोडने का प्रावधान किया है। इसके चलते किसी भी लोकसेवक के खिलाफ केस दर्ज कराने से पहले सरकार से अभियोजन स्वीकृति लेने की बाध्यता रखी गई है। स्वीकृति देने की समय सीमा 180 दिन तय है।
इसके अलावा अभी तक राजपत्रित अधिकारी को ही लोकसेवक माना जाता था, लेकिन अध्यादेश में सरकार ने लोक सेवक का दायर भी बढ़ा दिया है। अभियोजन स्वीकृति से पहले संबंधित लोक सेवक का नाम किसी भी मीडिया संस्थान अथवा व्यक्ति द्वारा सार्वजनिक करने पर दो साल की सजा का प्रावधान भी अध्यादेश में किया गया है।
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