दशहरा पर खुलता है ये दशानन मंदिर, रावण की पूजा-अर्जना के बाद मनाया जाता है उसका जन्मदिन
कानपुर। आज विजयदशमी यानि दशहरा है और देशभर में आज रावण के बड़े-बड़े पुतलों का दहन किया जाएगा। आज देशभर में असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व दशहरा मनाया जा रहा है, जिसमें लोग देर शाम को रावण का दहन करेंगे। दशहरा के दिन भले ही लोग रावण के पुतले को बुराई के प्रतीक के रूप में जलाते हैंं, लेकिन एक जगह ऐसी भी है, जहां दशहरा के दिन रावण की पूजा-अर्चना की जाती है। खास बात ये है कि ये पूजा-अर्चना पूरे विधि-विधान के साथ की जाती है और वो भी खुद रावण के ही मंदिर में।
जी हां, उत्तर प्रदेश में कानुपर में कानपुर के शिवाला इलाके में स्थित यह मंदिर देश में इकलौता रावण का मंदिर है। दशानन मंदिर के नाम से विख्यात इस मंदिर की खास बात है कि ये पूरे साल में सिर्फ एक ही दिन यानि विजयदशमी के दिन खुलता है। इस दिन लोग सुबह से ही रावण की पूजा-अर्चना करने के लिए उमड़ने लगते हैं। सुबह-सुबह यहां पूरे विधि-विधान से रावण की पूजा की जाती है और लोग अपने लिए मन्नतें मांगते हैं।
बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण वर्ष 1890 में हुआ था और इसकी स्थापना के बाद से ही यहां रावण की पूजा-अर्चना करने का क्रम हर साल लगातार जारी है। लोग हर वर्ष इस मंदिर के खुलने का इंतजार करते है और मंदिर खुलने पर यहां पूजा अर्चना बड़े धूमधाम से करते हैं। साल में सिर्फ विजयदशमी के दिन खुलने वाले इस दशान मंदिर में सबसे पहले रावण का दुग्ध स्नान और अभिषेक कर श्रंगार किया जाता है। उसके बाद विधिविधान से पूजन के साथ रावण स्तुति कर आरती की जाती है। आज दिनभर पूजा के बाद शाम को मंदिर के दरवाजे फिर से एक साल के लिये बंद कर दिये जाते हैं।
मान्यता है कि यहां मन्नत मांगने से लोगों के मन की मुरादें भी पूरी होती है और लोग इसी लिए यहां दशहरे पर रावण की विशेष पूजा करते हैं। श्रद्धालु तेल के दिए जलाकर मन्नतें मांगते हैं। परंपरा के अनुसार आज भी सुबह आठ बजे मंदिर के कपाट खोले गए, जिसके बाद रावण की प्रतिमा का साज श्रृंगार किया गया और फिर आरती हुई। बहुत कम लोग जानते होंगे कि रावण को जिस दिन राम के हाथों मोक्ष मिला, उसी दिन रावण पैदा भी हुआ था। इसलिए दशहरे के दिन ही रावण का जन्मदिन भी मनाया जाता है।
मंदिर संयोजक केके तिवारी बताते हैं कि रावण प्रकांड पंडित होने के साथ-साथ भगवान शिव का परम भक्त था। रावण की नाभि में ब्रह्म बाण लगने के बाद और रावण के धराशाही होने के बीच कालचक्र ने जो रचना की, उसने रावण को पूजने योग्य बना दिया। यह वह समय था, जब राम ने लक्ष्मण से कहा था कि रावण के पैरों की तरफ खड़े होकर सम्मान पूर्वक नीति ज्ञान की शिक्षा ग्रहण करो, क्योकि धरातल पर न कभी रावण के जैसा कोई ज्ञानी पैदा हुआ है और न कभी होगा। रावण का यही स्वरूप पूजनीय है और इसी स्वरुप को ध्यान में रखकर कानपुर में रावण के पूजन का विधान है।
जी हां, उत्तर प्रदेश में कानुपर में कानपुर के शिवाला इलाके में स्थित यह मंदिर देश में इकलौता रावण का मंदिर है। दशानन मंदिर के नाम से विख्यात इस मंदिर की खास बात है कि ये पूरे साल में सिर्फ एक ही दिन यानि विजयदशमी के दिन खुलता है। इस दिन लोग सुबह से ही रावण की पूजा-अर्चना करने के लिए उमड़ने लगते हैं। सुबह-सुबह यहां पूरे विधि-विधान से रावण की पूजा की जाती है और लोग अपने लिए मन्नतें मांगते हैं।
बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण वर्ष 1890 में हुआ था और इसकी स्थापना के बाद से ही यहां रावण की पूजा-अर्चना करने का क्रम हर साल लगातार जारी है। लोग हर वर्ष इस मंदिर के खुलने का इंतजार करते है और मंदिर खुलने पर यहां पूजा अर्चना बड़े धूमधाम से करते हैं। साल में सिर्फ विजयदशमी के दिन खुलने वाले इस दशान मंदिर में सबसे पहले रावण का दुग्ध स्नान और अभिषेक कर श्रंगार किया जाता है। उसके बाद विधिविधान से पूजन के साथ रावण स्तुति कर आरती की जाती है। आज दिनभर पूजा के बाद शाम को मंदिर के दरवाजे फिर से एक साल के लिये बंद कर दिये जाते हैं।
मान्यता है कि यहां मन्नत मांगने से लोगों के मन की मुरादें भी पूरी होती है और लोग इसी लिए यहां दशहरे पर रावण की विशेष पूजा करते हैं। श्रद्धालु तेल के दिए जलाकर मन्नतें मांगते हैं। परंपरा के अनुसार आज भी सुबह आठ बजे मंदिर के कपाट खोले गए, जिसके बाद रावण की प्रतिमा का साज श्रृंगार किया गया और फिर आरती हुई। बहुत कम लोग जानते होंगे कि रावण को जिस दिन राम के हाथों मोक्ष मिला, उसी दिन रावण पैदा भी हुआ था। इसलिए दशहरे के दिन ही रावण का जन्मदिन भी मनाया जाता है।
मंदिर संयोजक केके तिवारी बताते हैं कि रावण प्रकांड पंडित होने के साथ-साथ भगवान शिव का परम भक्त था। रावण की नाभि में ब्रह्म बाण लगने के बाद और रावण के धराशाही होने के बीच कालचक्र ने जो रचना की, उसने रावण को पूजने योग्य बना दिया। यह वह समय था, जब राम ने लक्ष्मण से कहा था कि रावण के पैरों की तरफ खड़े होकर सम्मान पूर्वक नीति ज्ञान की शिक्षा ग्रहण करो, क्योकि धरातल पर न कभी रावण के जैसा कोई ज्ञानी पैदा हुआ है और न कभी होगा। रावण का यही स्वरूप पूजनीय है और इसी स्वरुप को ध्यान में रखकर कानपुर में रावण के पूजन का विधान है।
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