गोधरा कांड की पूरी कहानी : गुजरात हाई कोर्ट ने 11 कैदियों की फांसी को उम्र कैद में बदला
नई दिल्ली। गुजरात में 27 फरवरी 2002 को हुए गोधरा कांड के मामले में 11 दोषियों को सुनाई गई फांसी की सजा पर आज हाई कोर्ट ने अहम फैसला दिया है, जिसके तहत कोर्ट ने इन 11 दोषियों की फांसी को उम्र कैद में तब्दील किया गया है। जबकि 20 दोषियों की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने पीड़ित परिवारों को 10-10 लाख का मुआवजा देने का आदेश दिया है।
गौरतलब है कि गोधरा रेलवे स्टेशन के पास साबरमती ट्रेन के एस-6 कोच में भीड़ द्वारा आग लगाए जाने के बाद 59 कारसेवकों की मौत हुई थी। इसके बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क गए थे। इस मामले में 1500 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी। गोधरा ट्रेन जलाने के मामले में गिरफ्तार किए गए लोगों के खिलाफ आतंकवाद निरोधक अध्यादेश (पोटा) लगाया गया। विशेष अदालत ने गोधरा कांड में 31 लोगों को दोषी पाया, जबकि 63 अन्य को बरी किया। इसके बाद 1 मार्च 2011 को विशेष अदालत ने गोधरा कांड में 11 को फांसी और 20 को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
यूं चला घटनाक्रम :
गौरतलब है कि गोधरा रेलवे स्टेशन के पास साबरमती ट्रेन के एस-6 कोच में भीड़ द्वारा आग लगाए जाने के बाद 59 कारसेवकों की मौत हुई थी। इसके बाद पूरे गुजरात में दंगे भड़क गए थे। इस मामले में 1500 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी। गोधरा ट्रेन जलाने के मामले में गिरफ्तार किए गए लोगों के खिलाफ आतंकवाद निरोधक अध्यादेश (पोटा) लगाया गया। विशेष अदालत ने गोधरा कांड में 31 लोगों को दोषी पाया, जबकि 63 अन्य को बरी किया। इसके बाद 1 मार्च 2011 को विशेष अदालत ने गोधरा कांड में 11 को फांसी और 20 को उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
यूं चला घटनाक्रम :
- 27 फरवरी 2002 : गोधरा रेलवे स्टेशन के पास साबरमती ट्रेन के एस-6 कोच में भीड़ द्वारा आग लगाए जाने के बाद 59 कारसेवकों की मौत हो गई। इस मामले में 1500 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई।
- 28 फरवरी 2002 : गुजरात के कई इलाकों में दंगा भड़का, जिसमें 1200 से अधिक लोग मारे गए। मारे गए लोगों में ज्यादातर अल्पसंख्यक समुदाय के लोग थे।
- 3 मार्च 2002 : गोधरा ट्रेन जलाने के मामले में गिरफ्तार किए गए लोगों के खिलाफ आतंकवाद निरोधक अध्यादेश (पोटा) लगाया गया।
- 6 मार्च 2002 : गुजरात सरकार ने कमीशन ऑफ इन्क्वायरी एक्ट के तहत गोधरा कांड और उसके बाद हुई घटनाओं की जांच के लिए एक आयोग की नियुक्ति की।
- 9 मार्च 2002 : पुलिस ने सभी आरोपियों के खिलाफ भादसं की धारा 120-बी (आपराधिक षड्यंत्र) लगाया गया।
- 25 मार्च 2002 : केंद्र सरकार के दबाव की वजह से सभी आरोपियों पर से पोटा हटाया गया।
- 18 फरवरी 2003 : गुजरात में भाजपा सरकार के दोबारा चुने जाने पर आरोपियों के खिलाफ फिर से आतंकवाद निरोधक कानून लगा दिया गया।
- 21 नवंबर 2003 : उच्चतम न्यायालय ने गोधरा ट्रेन जलाए जाने के मामले समेत दंगे से जुड़े सभी मामलों की न्यायिक सुनवाई पर रोक लगाई।
- 4 सितंबर 2004 : राजद नेता लालू प्रसाद यादव के रेलमंत्री रहने के दौरान केद्रीय मंत्रिमंडल के फैसले के आधार पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश यूसी बनर्जी की अध्यक्षता वाली एक समिति का गठन किया गया। इस समिति को घटना के कुछ पहलुओं की जांच का काम सौंपा गया।
- 21 सितंबर 2004 : नवगठित संप्रग सरकार ने पोटा कानून को खत्म कर दिया और अरोपियों के खिलाफ पोटा आरोपों की समीक्षा का फैसला किया।
- 17 जनवरी 2005 : यूसी बनर्जी समिति ने अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट में बताया कि एस-6 में लगी आग एक 'दुर्घटना' थी और इस बात की आशंका को खारिज किया कि आग बाहरी तत्वों द्वारा लगाई गई थी।
- 16 मई 2005 : पोटा समीक्षा समिति ने अपनी राय दी कि आरोपियों पर पोटा के तहत आरोप नहीं लगाए जाएं।
- 13 अक्टूबर 2006 : गुजरात उच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी कि यूसी बनर्जी समिति का गठन 'अवैध' और 'असंवैधानिक' है, क्योंकि नानावटी-शाह आयोग पहले ही दंगे से जुड़े सभी मामले की जांच कर रहा है। उसने यह भी कहा कि बनर्जी की जांच के परिणाम 'अमान्य' हैं।
- 26 मार्च 2008 : उच्चतम न्यायालय ने गोधरा ट्रेन में लगी आग और गोधरा के बाद हुए दंगों से जुड़े आठ मामलों की जांच के लिए विशेष जांच आयोग बनाया।
- 18 सितंबर 2008 : नानावटी आयोग ने गोधरा कांड की जांच सौंपी और कहा कि यह पूर्व नियोजित षड्यंत्र था और एस-6 कोच को भीड़ ने पेट्रोल डालकर जलाया।
- 12 फरवरी 2009 : उच्च न्यायालय ने पोटा समीक्षा समिति के इस फैसले की पुष्टि की कि कानून को इस मामले में नहीं लागू किया जा सकता है।
- 20 फरवरी 2009 : गोधरा कांड के पीड़ितों के रिश्तेदार ने आरोपियों पर से पोटा कानून हटाए जाने के उच्च न्यायालय के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी। इस मामले पर सुनवाई अभी भी लंबित है।
- 1 मई 2009 : उच्चतम न्यायालय ने गोधरा मामले की सुनवाई पर से प्रतिबंध हटाया और सीबीआई के पूर्व निदेशक आरके राघवन की अध्यक्षता वाले विशेष जांच दल ने गोधरा कांड और दंगे से जुड़े आठ अन्य मामलों की जांच में तेजी आई।
- 1 जून 2009 : अहमदाबाद के साबरमती केंद्रीय जेल के अंदर गोधरा ट्रेन कांड की सुनवाई शुरू हुई।
- 6 मई 2010 : उच्चतम न्यायालय सुनवाई अदालत को गोधरा ट्रेन कांड समेत गुजरात के दंगों से जुड़े 9 संवेदनशील मामलों में फैसला सुनाने से रोका।
- 28 सितंबर 2010 : इस मामले को लेकर सुनवाई पूरी हुई, लेकिन शीर्ष अदालत द्वारा रोक लगाए जाने के कारण फैसला नहीं सुनाया गया।
- 18 जनवरी 2011 : सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर फैसला सुनाने पर से प्रतिबंध को हटा दिया।
- 22 फरवरी 2011 : विशेष अदालत ने गोधरा कांड में 31 लोगों को दोषी पाया, जबकि 63 अन्य को बरी किया।
- 1 मार्च 2011: विशेष अदालत ने गोधरा कांड में 11 को फांसी, 20 को उम्रकैद की सजा सुनाई।
- 9 अक्टूबर 2017 : इस मामले में एसआईटी की विशेष अदालत के फैसले को चुनौती देने वाली अपीलों पर सुनवाई करते हुए गुजरात हाई कोर्ट ने अपना फैसला दिया। हाई कोर्ट ने इस मामले में 11 दोषियों को सुनाई गई फांसी की सजा को उम्र कैद में बदला। वहीं 20 दोषियों की उम्रकैद को बरकरार रखा।
No comments