पीएम मोदी अपने जन्मदिवस पर केवड़िया में करेंगे सरदार सरोवर नर्मदा बांध परियोजना का लोकार्पण, पढ़िए अब तक का पूरा इतिहास
नर्मदा। गुजरात में पिछले कई दशकों से विवादों में घिरी रही सरदार सरोवर नर्मदा बांध परियोजना का कल लोकार्पण किया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र नर्मदा जिले के केवड़िया में कल एक आम सभा को संबोधित करने के बाद इस परियोजना का लोकार्पण करेंगे। ऐसे में गुजरात विधानसभा चुनावों से पहले मोदी की इस रैली को राजनीतिक नजरिये से काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। गौरतलब है कि इस परियोजना का लगातार विरोध होता रहा है। इन परियोजनाओं का उद्देश्य गुजरात के सूखाग्रस्त इलाक़ों में पानी पहुंचाना और मध्य प्रदेश के लिए बिजली पैदा करना है लेकिन ये परियोजनाएं अपनी अनुमानित लागत से काफ़ी ऊपर चली गई हैं, जिसे लेकर ये लगातार विवादों में घिरी रहीं।
आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, पीएम मोदी कल अपने जन्मदिवस के अवसर पर नर्मदा जिले के केवड़िया स्थित सरदार सरोवर नर्मदा बांध परियोजना जाएंगे। बांध पर ही वह नर्मदा नदी की पूजा—अर्चना करेंगे। इसके बाद वह इस परियोजना का लोकार्पण करेंगे। मोदी कल उस नर्मदा बांध परियोजना का लोकार्पण करेंगे, जिसकी परिकल्पना सरदार वल्लभभाई पटेल ने 1946 में ही की थी। हालांकि इस पर काम 1970 के दशक से ही प्रारंभ हो पाया। इस बांध परियोजना और इस पर बनी विद्युत परियोजना से चार राज्यों गुजरात, महाराष्ट, राजस्थान और मध्य प्रदेश को लाभ मिलेगा।
प्रधानमंत्री के इस कार्यक्रम के माध्यम से नर्मदा यात्रा का भी समापन होगा। इस यात्रा में 85 रथ 24 जिलों, 14 शहरों, 71 कस्बों और 10 हजार गांवों से गुजरे। प्रत्येक रथ पर नर्मदा की प्रतिमा को रखा गया था। प्रधानमंत्री की नर्मदा पूजा के साथ इस यात्रा का समापन होगा। प्रधानमंत्री बांध के समीप ही बन रही सरदार वल्लभ भाई पटेल की विशालकाय प्रतिमा ‘स्टेचू आफ यूनिटी’ के निर्माण में हुई प्रगति का जायजा भी लेंगे। यह विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा बनने जा रही है।
बांध और सरदार पटेल की प्रतिमा का निर्माण कार्य में संलग्न सरदार सरोवर नर्मदा निगम लि. के अधीक्षण अभियंता आर जी कानूनगो ने भाषा को बताया कि 182 मीटर ऊंची यह प्रतिमा विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा होगी। अभी ‘स्टेचू आफ लिबर्टी’ को दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा माना जाता है। प्रधानमंत्री रविवार को इस प्रतिमा के निर्माण में हुई प्रगति का जायजा लेंगे। सरदार सरोवर बांध के पास इस प्रतिमा को बनवाने का कारण यह है कि गुजरात में जल संकट को देखते हुए सरदार पटेल ने ही 1946 में पहली बार नर्मदा पर बांध बनवाने का सुझाव दिया था।
इस प्रतिमा का निर्माण सरदार वल्लभभाई राष्टीय एकता ट्रस्ट करवा रहा है। इसके निर्माण कार्य का ठेका एल एंड टी कंपनी को दिया गया है। कानूनगो ने बताया कि इस विशाल प्रतिमा के निर्माण के लिए एक जून 2018 का समय तय किया गया था किन्तु इसके अब अक्तूबर 2018 में पूरा होने के आसार हैं। प्रतिमा की छाती की ऊंचाई तक एक प्लेटफार्म बनाया जाएगा, जिस पर चढ़कर एक साथ 200 लोग प्रतिमा को समीप से देख पायेंगे। इस प्लेटफार्म तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां, लिफ्ट और रास्ते का निर्माण भी हो रहा है। उन्होंने बताया कि इस इस प्रतिमा के निर्माण पर 2989 करोड़ रूपये की लागत आयेगी।
आपकों बता दें कि गुजरात के अस्तित्व में आने के कुछ समय बाद ही गुजरात की जीवनदायी कहे जाने वाले सरदार सरोवर नर्मदा योजना (नर्मदा बांध) की नींव तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 4 अप्रैल 1961 को रखी थी। आज पांच दशक (56) सालों के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसका लोकार्पण करेंगे। सरदार सरोवर दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बांध है और यह योजना इसकी कुल लागत के हिसाब से भारत की अब तक की सबसे बड़ी योजना है।
नर्मदा नदी पर बनने वाले 30 बांधों में से सरदार सरोवर भी सबसे बड़ी बांध परियोजना है, जो नर्मदा नदी पर बना 800 मीटर ऊंचा है। इस परियोजना का उद्देश्य गुजरात के सूखाग्रस्त इलाक़ों में पानी पहुंचाना और मध्य प्रदेश के लिए बिजली पैदा करना है, लेकिन ये परियोजनाएं अपनी अनुमानित लागत से काफ़ी ऊपर चली गई हैं। मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में पड़ने वाली नर्मदा घाटी में 30 बड़े, 135 मझोले और 3000 छोटे बांध बनाने की योजना शुरू से ही हर मुद्दे पर विवाद में रही है।
सरदार सरोवर नर्मदा बांध परियोजना : कब कब क्या हुआ
आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, पीएम मोदी कल अपने जन्मदिवस के अवसर पर नर्मदा जिले के केवड़िया स्थित सरदार सरोवर नर्मदा बांध परियोजना जाएंगे। बांध पर ही वह नर्मदा नदी की पूजा—अर्चना करेंगे। इसके बाद वह इस परियोजना का लोकार्पण करेंगे। मोदी कल उस नर्मदा बांध परियोजना का लोकार्पण करेंगे, जिसकी परिकल्पना सरदार वल्लभभाई पटेल ने 1946 में ही की थी। हालांकि इस पर काम 1970 के दशक से ही प्रारंभ हो पाया। इस बांध परियोजना और इस पर बनी विद्युत परियोजना से चार राज्यों गुजरात, महाराष्ट, राजस्थान और मध्य प्रदेश को लाभ मिलेगा।
प्रधानमंत्री के इस कार्यक्रम के माध्यम से नर्मदा यात्रा का भी समापन होगा। इस यात्रा में 85 रथ 24 जिलों, 14 शहरों, 71 कस्बों और 10 हजार गांवों से गुजरे। प्रत्येक रथ पर नर्मदा की प्रतिमा को रखा गया था। प्रधानमंत्री की नर्मदा पूजा के साथ इस यात्रा का समापन होगा। प्रधानमंत्री बांध के समीप ही बन रही सरदार वल्लभ भाई पटेल की विशालकाय प्रतिमा ‘स्टेचू आफ यूनिटी’ के निर्माण में हुई प्रगति का जायजा भी लेंगे। यह विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा बनने जा रही है।
बांध और सरदार पटेल की प्रतिमा का निर्माण कार्य में संलग्न सरदार सरोवर नर्मदा निगम लि. के अधीक्षण अभियंता आर जी कानूनगो ने भाषा को बताया कि 182 मीटर ऊंची यह प्रतिमा विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा होगी। अभी ‘स्टेचू आफ लिबर्टी’ को दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा माना जाता है। प्रधानमंत्री रविवार को इस प्रतिमा के निर्माण में हुई प्रगति का जायजा लेंगे। सरदार सरोवर बांध के पास इस प्रतिमा को बनवाने का कारण यह है कि गुजरात में जल संकट को देखते हुए सरदार पटेल ने ही 1946 में पहली बार नर्मदा पर बांध बनवाने का सुझाव दिया था।
इस प्रतिमा का निर्माण सरदार वल्लभभाई राष्टीय एकता ट्रस्ट करवा रहा है। इसके निर्माण कार्य का ठेका एल एंड टी कंपनी को दिया गया है। कानूनगो ने बताया कि इस विशाल प्रतिमा के निर्माण के लिए एक जून 2018 का समय तय किया गया था किन्तु इसके अब अक्तूबर 2018 में पूरा होने के आसार हैं। प्रतिमा की छाती की ऊंचाई तक एक प्लेटफार्म बनाया जाएगा, जिस पर चढ़कर एक साथ 200 लोग प्रतिमा को समीप से देख पायेंगे। इस प्लेटफार्म तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां, लिफ्ट और रास्ते का निर्माण भी हो रहा है। उन्होंने बताया कि इस इस प्रतिमा के निर्माण पर 2989 करोड़ रूपये की लागत आयेगी।
आपकों बता दें कि गुजरात के अस्तित्व में आने के कुछ समय बाद ही गुजरात की जीवनदायी कहे जाने वाले सरदार सरोवर नर्मदा योजना (नर्मदा बांध) की नींव तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 4 अप्रैल 1961 को रखी थी। आज पांच दशक (56) सालों के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसका लोकार्पण करेंगे। सरदार सरोवर दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बांध है और यह योजना इसकी कुल लागत के हिसाब से भारत की अब तक की सबसे बड़ी योजना है।
नर्मदा नदी पर बनने वाले 30 बांधों में से सरदार सरोवर भी सबसे बड़ी बांध परियोजना है, जो नर्मदा नदी पर बना 800 मीटर ऊंचा है। इस परियोजना का उद्देश्य गुजरात के सूखाग्रस्त इलाक़ों में पानी पहुंचाना और मध्य प्रदेश के लिए बिजली पैदा करना है, लेकिन ये परियोजनाएं अपनी अनुमानित लागत से काफ़ी ऊपर चली गई हैं। मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में पड़ने वाली नर्मदा घाटी में 30 बड़े, 135 मझोले और 3000 छोटे बांध बनाने की योजना शुरू से ही हर मुद्दे पर विवाद में रही है।
सरदार सरोवर नर्मदा बांध परियोजना : कब कब क्या हुआ
- साल 1946 में नर्मदा नदी से सिंचाई और बिजली उत्पादन करने के लिए बांध बनाने की पहल भरूच परियोजना के साथ चार परियोजना को चिन्हित किया गया। इसमें गुजरात में भरूच, मध्यप्रदेश में बरगी, तवा एवं पुनासा परियोजना को प्राथमिकता दी गई।
- 5 अप्रैल 1961 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने नर्मदा बांध का निर्माण के लिए नींव रखी।
- 1964 में गुजरात एवं मध्यप्रदेश सरकारों के बीच पानी के बंटवारे को लेकर विवाद हुआ। भारत सरकार ने डॉ. एएन खोसला की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की कमेटी का गठन किया, जिसमें वर्ष 1965 में पूर्णत: संरक्षित जलस्तर (एफआरएल 500 फीट (152.44 मीटर) के साथ बांध की अधिकतम ऊंचाई करने की सिफारिश की गई। हालांकि मध्यप्रदेश सरकार खोसला समिति की रिपोर्ट से सहमत नहीं हुई। इसके चलते भारत सरकार ने अंतरराज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 के तहत वर्ष अक्टूबर 1969 में नर्मदा जल विवाद अधिकरण (एनडब्ल्यूडीटी) का गठन किया। एनडब्ल्यूडीटी ने 10 वर्ष बाद दिसंबर, वर्ष 1979 में अपना फैसला सुनाया।
- जुलाई 1993 में टाटा समाज विज्ञान संस्थान ने सात वर्षों के अध्ययन के बाद नर्मदा घाटी में बनने वाले सबसे बड़े सरदार सरोवर बांध के विस्थापितों के बारे में अपना शोधपत्र प्रस्तुत किया। इसमें कहा गया कि पुनर्वास एक गंभीर समस्या रही है। इस रिपोर्ट में ये सुझाव भी दिया गया कि बांध निर्माण का काम रोक दिया जाए और इस पर नए सिरे से विचार किया जाए।
- अगस्त 1993 में परियोजना के आकलन के लिए भारत सरकार ने योजना आयोग के सिंचाई मामलों के सलाहकार के नेतृत्व में एक पांच सदस्यीय समिति का गठन किया।
- दिसम्बर 1993 में केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय ने कहा कि सरदार सरोवर परियोजना ने पर्यावरण संबंधी नियमों का पालन नहीं किया है।
- जनवरी 1994 में भारी विरोध को देखते हुए प्रधानमंत्री ने परियोजना का काम रोकने की घोषणा की।
- मार्च 1994 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर मामले में हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ने इस पत्र में कहा कि राज्य सरकार के पास इतनी बड़ी संख्या में लोगों के पुनर्वास के साधन नहीं हैं।
- अप्रैल 1994 में विश्व बैंक ने अपनी परियोजनाओं की वार्षिक रिपोर्ट में कहा कि सरदार सरोवर परियोजना में पुनर्वास का काम ठीक से नहीं हो रहा है।
- जुलाई 1994 में केंद्र सरकार की पांच सदस्यीय समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंपी लेकिन अदालत के आदेश के कारण इसे जारी नहीं किया जा सका। इसी महीने में कई पुनर्वास केंद्रों में प्रदूषित पानी पीने से दस लोगों की मौत हुई।
- नवंबर-दिसम्बर 1994 में बांध बनाने के काम दोबारा शुरू करने के विरोध में नर्मदा बचाओ आंदोलन ने भोपाल में धरना देना शुरू किया।
- दिसम्बर 1994 में मध्य प्रदेश सरकार ने विधानसभा के सदस्यों की एक समिति बनाई जिसने पुनर्वास के काम का जायज़ा लेने के बाद कहा कि भारी गड़बड़ियां हुई हैं।
- जनवरी 1995 में सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि पांच सदस्यों वाली सरकारी समिति की रिपोर्ट को जारी किया जाए। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने बांध की उपयुक्त ऊंचाई तय करने के लिए अध्ययन के आदेश दिए।
- मार्च 1995 में विश्व बैंक ने अपनी एक रिपोर्ट में स्वीकार किया कि सरदार सरोवर परियोजना गंभीर समस्याओं में घिरी है।
- जून 1995 में गुजरात सरकार ने एक नर्मदा नदी पर एक नई विशाल परियोजना-कल्पसर शुरू करने की घोषणा की।
- नवंबर 1995 में सुप्रीम कोर्ट ने सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने की अनुमति दी।
- वर्ष 1996 में उचित पुनर्वास और ज़मीन देने की मांग को लेकर मेधा पाटकर के नेतृत्व में अलग-अलग बांध स्थलों पर धरना और प्रदर्शन जारी रहा।
- अप्रैल 1997 में महेश्वर के विस्थापितों ने मंडलेश्वर में एक जुलूस निकाला, जिसमें ढाई हज़ार लोग शामिल हुए। इन लोगों ने सरकार और बांध बनाने वाली कंपनी एस कुमार्स की पुनर्वास योजनाओं पर सवाल उठाए।
- अक्टूबर 1997 में बांध बनाने वालों ने अपना काम तेज़ किया जबकि विरोध जारी रहा।
- जनवरी 1998 में सरकार ने महेश्वर और उससे जुड़ी परियोजनाओं की समीक्षा की घोषणा की और काम रोका गया।
- अप्रैल 1998 में दोबारा बांध का काम शुरू हुआ, स्थानीय लोगों ने निषेधाज्ञा को तोड़कर बांधस्थल पर प्रदर्शन किया, पुलिस ने लाठियां चलाईं और आंसू गैस के गोले छोड़े।
- मई-जुलाई 1998 में लोगों ने जगह-जगह पर नाकाबंदी करके निर्माण सामग्री को बांधस्थल तक पहुंचने से रोका।
- नवंबर 1998 में बाबा आमटे के नेतृत्व में एक विशाल जनसभा हुई और अप्रैल 1999 तक ये सिलसिला जारी रहा।
- फरवरी 1999 में सुप्रीम कोर्ट ने बांध की ऊंचाई 80 मीटर (260 फीट) से बढ़ाकर 88 मीटर (289 फीट) तक बढ़ाने को लेकर हरी झंडी दे दी।
- दिसम्बर 1999 में दिल्ली में एक विशाल सभा का आयोजन किया गया। इस सभा में नर्मदा घाटी के हज़ारों विस्थापितों ने हिस्सा लिया।
- मार्च 2000 में बहुराष्ट्रीय ऊर्जा कंपनी ऑगडेन एनर्जी ने महेश्वर बांध में 49 प्रतिशत हिस्सेदारी के एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।
- अक्टूबर 2000 में सुप्रीम कोर्ट ने फिर से फैसला सुनाया था। बाद में राज्य सरकार ने 90 मीटर तक (300 फीट) तक बांध बढ़ाने को लेकर स्वीकृति दी।
- मई 2002 में नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण द्वारा 95 मीटर (312 फीट) तक ऊंचाई बढ़ाने को लेकर मंजूरी दी गई।
- मार्च 2004 में प्राधिकरण ने 15 मीटर (49 फीट) और ऊंचाई बढ़ाने की मंजूरी दी, जो 95 मीटर (312 फीट) से बढ़ाकर 110 मीटर (360 फीट) की गई।
- मार्च 2006 में नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण ने बांध की ऊंचाई 110.64 मीटर (363 फीट) से 121.92 मीटर (400 फीट) बढ़ाने को हरी झंडी दी।
- गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वर्ष 2006 में नर्मदा बांध की ऊंचाई बढ़ाने की मांग को लेकर अनशन भी किया था।
- अगस्त 2013 में भारी बारिश के चलते बांध पर 4 फीट तक चादर चली और जलस्तर 131.5 मीटर (431 फीट) तक बढ़ा। इसके चलते नर्मदा किनारे रहने वाले करीब 7 हजार ग्रामीणों को स्थानांतरित किया गया।
- नर्मदा कंट्रोल (नियंत्रण) प्राधिकरण ने 8 वर्ष की जद्दोजहद के बाद नर्मदा बांध पर दरवाजे रखकर उसकी ऊंचाई 121.92 से 17 मीटर बढ़ाकर 138.68 मीटर तक ऊंचाई ले जाने को मंजूरी दे दी।
- नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के दो सप्ताह के बाद ही बांध की ऊंचाई बढ़ाने को हरी झंडी मिल गई। अब गुजरात की जीवनदायी नर्मदा बांध को ऊंचाई के लिए हरी झंडी मिलने के बाद गुजरात के लोगों में खुशी की लहर है।
- 17 सितंबर 2017 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने जन्मदिन के दिन सरदार सरोवर परियोजना के 30 दरवाजे खोलकर इसे राष्ट्र को समर्पित करेंगे। गौरतलब है कि नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण ने 17 जून को ये दरवाज़े बंद कर दिये थे।
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