NDTV में अडानी की एंट्री के पीछे आखिर कब, क्या, क्यों और कैसे हुआ 'खेला'
NDTV यानि नई दिल्ली टेलीविजन लिमिटेड देश का एक प्रमुख मीडिया हाउस है, जो कि अपने तीन राष्ट्रीय समाचार चैनल एनडीटीवी 24x7, एनडीटीवी इंडिया और एनडीटीवी प्रॉफिट संचालित करती है। ऑनलाइन प्रजेंस की बात करें तो यह विभिन्न प्लेटफार्मों पर करीब 35 मिलियन से अधिक फोलोवर्स के साथ सोशल मीडिया पर सबसे अधिक फॉलो किए जाने वाले न्यूज चैनलों में से एक है। अपने दर्शकों के बीच एनडीटीवी ने एक खास और अलग मुकाम बना रखा है, जिसके चलते इसके दर्शकों के बीच यह चैनल अपनी संपादकीय नीति और स्पष्टवादिता को लेकर भी जाना जाता है। इसी चैनल पर प्राइम टाइम शो में दिखाई देने वाला चेहरा भी इस चैनल की मुख्य धुरी माना जाता है, जो कि अपनी पत्रकारिता को लेकर अपना खुद का भी एक अलग ही मुकाम रखते हैं। इसके अलावा चैनल पर खबरों को सिर्फ खबरों की तरह ही यानि बिना मिर्च-मसाले के दिखाना भी इसे दूसरों से अलग बनाता है।
NDTV को अब जल्द ही नया मालिक मिलने के आसार बनते नजर आ रहे हैं। अब नया मालिक होगा तो संस्थान में कई बदलाव भी होना तय है और कई उलटफेर भी। ऐसे में चैनल की नीतियों में भी बदलाव होना तय है। दरअसल, दुनिया के तीसरे सबसे बड़े दौलतमंद शख्स गौतम अडानी बहुत तेजी के साथ अपने बिजनेस पोर्टफोलियो को बढ़ाने में लगे हैं और अब उनकी नजर मीडिया सेक्टर पर भी है, जिसके चलते ही उन्होंने हाल ही में NDTV में 29.18 प्रतिशत की हिस्सेदारी हासिल की और अब एक बार फिर से अडानी ग्रुप NDTV में 26 प्रतिशत की अतिरिक्त हिस्सदारी हासिल करने के लिए ओपन ऑफर लाया है।
इसके तहत छोटे निवेशकों के जरिये NDTV के 1,67,62,530 इक्विटी शेयर यानि करीब 26 फीसदी हिस्सेदारी खरीदने के लिए 294 रुपए का ऑफर प्राइज तय किया है। यह अतिरिक्त 26 फीसदी हिस्सेदारी खरीदने के लिए अडानी ग्रुप करीब 493 करोड़ रुपए खर्च करेगी। अडानी का यह 26 प्रतिशत वाला ओपन ऑफर कामयाब रहा तो एनडीटीवी में उसकी कुल हिस्सेदारी 55.18% हो जाएगी और NDTV की कमान अडाणी ग्रुप के हाथों में आ जाएगी। अडानी ने जिस तरह से एक अनजान सी कंपनी के जरिये NDTV में हिस्सेदारी हासिल कही, उसे 'होस्टाइल टेकओवर' यानी प्रबंधन की इच्छा के विरुद्ध कंपनी पर कब्जा किया जाना कहते हैं।
चर्चाएं तो रविश कुमार के न्यूयॉर्क घूमने को लेकर भी तेज है और इसे आने वाले बदलाव से जोड़कर भी देखा जा रहा है। खैर, चर्चाएं हैं, कुछ भी हो सकती है। बाकी, कहां क्या होता है, यह समय ही बताएगा। कयास तो यह भी लगाया जा रहा है कि रवीश कुमार अडानी ग्रुप के साथ काम करने में सहज नहीं होंगे। ऐसे में संभव है कि वह नौकरी छोड़ने का फैसला ले सकते हैं। हाल ही में रवीश कुमार अपना यूट्यूब चैनल शुरू कर चुके हैं और फेसबुक पेज का भी मोनेटाइजेशन ऑन किया है। आमदनी की बात करें तो रवीश के वीडियो पर मिलियन व्यूज आते हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो जितनी सैलरी एनडीटीवी रवीश को देती है, उतने पैसे वह नए प्लेटफार्म से भी कमा सकते हैं।
कब और कैसे शुरू हुआ यह 'खेला'
दरअसल, एनडीटीवी को अप्रत्यक्ष रूप से खरीद लिये जाने के इस खेल की शुरुआत उस वक्त से हुई थी, जब अडानी ग्रुप ने स्टॉक एक्सचेंज को बताया कि उसने मीडिया और कंसल्टेंसी कारोबार में दखल रखने वाली कंपनी VCPL यानी विश्वप्रधान कॉमर्शियल प्राइवेट लिमिटेड को खरीद लिया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अडानी ग्रुप ने VCPL को महज 114 करोड़ रुपये में खरीदा था, जबकि VCPL के पास मौजूद वारंट का वैल्यू करीब 800 करोड़ रुपये के बराबर था। VCPL के पास NDTV की एक प्रमोटर ग्रुप कंपनी RRPR होल्डिंग्स प्राइवेट लिमिटेड के 29.18 फीसदी इक्विटी शेयर गिरवी थे। ऐसे में VCPL को खरीदकर अडानी ने NDTV में भी 29.18 फीसदी हिस्सेदारी हासिल कर ली।
NDTV ने VCPL के पास शेयर गिरवी क्यों रखे
दरअसल, एनडीटीवी के संस्थापक और प्रोमोटर्स प्रणय रॉय और उनकी पत्नी राधिका रॉय ने साल 2008-09 में RRPR यानी (राधिका रॉय प्रणय रॉय) होल्डिंग्स प्राइवेट लिमिटेड के जरिये VPCL से कर्ज लिया था। इस कर्ज के बदले उन्होंने VCPL को 29.18 फीसदी वाउचर्स रेहन में दिए थे। साथ ही यह विकल्प भी दिया गया था कि कर्ज नहीं चुका पाने की स्थिति में वे इन वाउचर्स का 99 दशमलव 5 फीसदी हिस्सा इक्विटी में बदल सकते हैं। अब चूंकि यह कर्ज 10 साल के लिए लिया गया था और इसकी अवधि 2019 में खत्म हो गई थी, लेकिन RRPR ने लिया गया कर्ज नहीं चुकाया था। ऐसे में अडानी ग्रुप ने VCPL को खरीदने के जरिये NDTV में 29.18 फीसदी की हिस्सेदारी भी हासिल कर ली।
क्या होता है यह ओपन ऑफर
शेयर बाजार की नियामक संस्था सेबी के नियमों के मुताबिक, देश में लिस्टेड किसी भी कंपनी, जिसके पास 25 फीसदी या उससे अधिक शेयर हो, उसे और हिस्सेदारी खरीदने के लिए ओपन ऑफर लाना होता है। इस ओपन ऑफर से कंपनी के माइनॉरिटी शेयर होल्डर पहले से तय कीमत पर अपने शेयर अपनी मर्जी से नए निवेशक को बेच सकें। अडानी ग्रुप ओपन ऑफर के जरिये 294 रुपये प्रति शेयर के भाव पर यह 26 फीसदी हिस्सेदारी खरीदना चाहती है, जो कि NDTV के शेयर के मौजूदा भाव से करीब 35 फीसदी से भी ज्यादा कम है। ऐसे में सवाल उठता है कि जिन निवेशकों के पास NDTV के शेयर हैं, क्या वे सस्ते में अपने शेयर अडानी ग्रुप को बेचेंगे? क्योंकि छोटे निवेशकों के लिए शेयर को खुले बाजार में बेचना ज्यादा फायदेमंद होगा। जबकि यह भी माना जा रहा है कि NDTV के शेयर में अभी और भी तेजी आ सकती है, क्योंकि कभी 75 रुपए की न्यूनतम कीमत पर जाने वाला यही शेयर 567 रुपए के भाव तक भी जा चुका है। ऐसे में अब एक बार फिर से अडानी ग्रुप का नाम जुड़ने की वजह से यह शेयर अपने उच्चतम स्तर से भी ऊपर जा सकता है।
NDTV में अभी किसके पास कितनी हिस्सेदारी
NDTV के प्रमोटर्स प्रणय रॉय और उनकी पत्नी राधिका रॉय के पास अभी भी 32.36 फीसदी हिस्सेदारी है। प्रणय रॉय के पास 15.94 फीसदी और राधिका रॉय के पास 16.32 फीसदी हिस्सा है। RRPR के पास NDTV के 29.18 फीसदी शेयर थे, जिसे अडानी ग्रुप पहले ही हासिल कर चुका है। रीटेल निवेशकों के पास NDTV के 12.57 फीसदी शेयर हैं, कॉर्पोरेट संस्थाओं के पास 9.61 फीसदी, फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स यानी FPI के पास 14.7 फीसदी और अन्य के पास कंपनी की 1.67 फीसदी हिस्सेदारी है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अडानी समूह ने VCPL नाम की जिस कंपनी के जरिये NDTV में हिस्सेदारी हासिल की है, वह कंपनी पहले रिलायंस इंडस्ट्रीज यानी अंबानी घराने से जुड़ी हुई थी।
क्या पूरा होगा अडानी का इरादा?
NDTV में मालिकाना हक हासिल करने का अडानी का इरादा पूरा होना, इस बात पर टिका है कि जो ओपन ऑफर पेश किया गया है, उसमें NDTV के शेयर होल्डर क्या उन्हें कम कीमत पर शेयर बेचेंगे या फिर नहीं। अगर अडानी का यह ओपन ऑफर कामयाब रहा तो एनडीटीवी में उसकी कुल हिस्सेदारी 55.18% हो जाएगी और NDTV की कमान अडाणी ग्रुप के हाथों में आ जाएगी। ऐसे में मीडिया संस्थानों में कॉरपोरेट घरानों की एंट्री होना कहीं ना कहीं मीडिया जगत के लिए एक बड़े खतरे का संकेत है, जो कि पहले से काफी संकटों का सामना करता दिखाई दे रहा है। क्योंकि किसी भी मीडिया संस्थान में कॉरपोरेट जगत की दस्तक से जहां उसकी संपादकीय नीति प्रभावित होती है, वहीं उस संस्थान में कार्य करने वाले तमाम मीडियाकर्मियों को भी अपने सिद्धांतों और कार्यप्रणाली में भी बदलाव करना ही पड़ता है, अगर उन्हें वहां काम करना है तो, और अगर कोई अपने सिद्धांतों और कार्यप्रणाली के साथ समझौता करने को तैयार नहीं है, तो फिर उसे वहां से बाय—बाय तो करना ही पड़ेगा।
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