Jaipur Photojournalism सेमिनार में युवाओं ने जाने फोटोग्राफी के गुर
जयपुर। फोटोजर्नलिज़्म के क्षेत्र में नाम, प्रसिद्धि और महिमा अर्जित करने की आकांक्षा रखने वाले युवाओं को प्रबुद्ध करने के उद्देश्य से इमेजिन फोटोजर्नलिस्ट सोसाइटी ने राजधानी जयपुर स्थित मणिपाल यूनिवर्सिटी में Jaipur Photo Journalism के चौथे संस्करण का आयोजन किया। इस सेमिनार के माध्यम से छात्रों को फोटोजर्नलिस्ट व पत्रकारिता के क्षेत्र में विशेषज्ञों के साथ जुड़ने का मौका मिला। सेमिनार में कई प्रसिद्ध फोटोजर्नलिस्ट एवं वरिष्ठ पत्रकार, पत्रकारिता के क्षेत्र में अपने वर्तमान परिप्रेक्ष्य और ने इस क्षेत्र में हो रहे परिवर्तन पर अपने विचार साझा किये।
करीब 200 से अधिक विद्यार्थियों ने इस सेमिनार में हिस्सा लिया और फोटोग्राफी जर्नलिज्म के बारे में जाना। इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता द वायर के संस्थापक संपादक एमके वेणु, गुजरात के वरिष्ठ फोटोग्राफर शैलेश रावल, प्रो. सचिन बत्रा, विपुल मुद्गल, उमेश गोगना, धर्मेंदर कंवर एवं रोहित परिहार रहे। इमेजिन फोटोजर्निलस्ट सोसाइटी की टीम ने सभी अतिथिगण एवं कार्यक्रम के सहायकों को धन्यवाद व्यक्त किया।
द वायर के संस्थापक संपादक एमके वेणु ने कहा कि न्यूज़ रिपोर्टिंग में पहले से ही वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी का महत्व रहा है। पुराने ज़माने के फोटोजर्नलिस्ट की फोटो आज भी हमें एक स्टोरी कह जाती है और आज की तेज़ रफ़्तार जिंदगी में लोग फोटो देखकर ही स्टोरी पढ़ने के लिए उत्साहित होते हैं। दूसरी ओर तकनीक के सहारे लोग सच को नज़रअंदाज़ भी कर देते हैं और घटना की बारीकियों में नहीं जाते। टेक्नोलॉजी हमें सशक्त बनाने के लिए बनी है, दुर्बल और असहाय बनाने के लिए नहीं। हमें विवेकपूर्ण फोटोग्राफी करनी चाहिए और हमारे काम का देश के हित में इस्तेमाल होना चाहिए।
इंडिया टुडे के वरिष्ठ फोटोग्राफर शैलेश रावल ने कहा कि भविष्य में जब दूसरे ग्रह के लोगो से बात करनी होगी तो प्रथम भाषा फोटोग्राफी होगी। फोटोग्राफी का जब अविष्कार हुआ तब उसमे विज्ञान, गणितशास्त्र और कला का समन्वय था। फोटोग्राफी क्षेत्र में जब थोड़ी क्रांति हुई तो फोटो डवलप करने के केमिकल का उपयोग बंद हो गया और इसमें से विज्ञान निकल गया। ऐसी तरह जब डिजिटल फोटोग्राफी की शुरुआत हुई तो इसमें केवल कला रह गई। अब फोटोग्राफर बनने के लिए जो कौशल चाहिए वह केवल कला है। कला आतंरिक गुण होता है और सबकी विभिन्न सोच होती है।
वरिष्ठ पत्रकार विपुल मुद्गल ने कहा कि पत्रकारिता एक विषय कार्य है जो समाज के सभी डॉट्स को जोड़ने का काम करता है। चाहे हम लेखक या फोटोग्राफर, हमारा मुख्य काम सिस्टम और लोगों से जुड़ना है। हमें समाज में उन पहलुओं को निडर होकर उजागर करना होता है, जिन से लोगो की आजादी बनी रहे। टेक्नोलॉजी की मदद से लोगों को मुख्य धरा में शामिल करना चाहिए, वह टेक्नोलॉजी बेकार है जो पिछड़े लोगो के लिए अभिशाप बन जाती है।
वरिष्ठ संपादक रोहित परिहार ने कहा कि पहले के ज़माने में फोटो खींचने में फोटोजर्नलिस्ट को बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। फोटोग्राफर को स्टोरी के लिए लोगों को यकीन दिलाना पड़ता था कि यह फोटो छपने से उनको कोई नुकसान नहीं होगा। कई बार महिलाओं को घूंघट उठाकर फोटो खिंचवाने का निवेदन करना पड़ता था। ऐसे में फोटोग्राफी क्षेत्र में सेल्फ़ी तकनीक एक बड़ी क्रांति है। यह सेल्फी पहले के ज़माने के कैमरा में भी टाइमर तकनीक से उपलब्ध थी। फोटोग्राफी ने समाज में परिवर्तन लाने ने अहम् भूमिका निभाई है। समाज में आत्मविश्वास, भरोसा और सच को बरक़रार रखने में फोटोग्राफी क्षेत्र ने अच्छी भूमिका निभाई है।
ट्रेवल राइटर के धर्मेंदर कंवर ने कहा कि एक जर्नलिस्ट या फोटोग्राफर चाहे वह कितना ही अनुभवी हो, अगर अच्छी स्टोरी या फोटो चाहता है तो उसकी तलाश में गली-गली घूमना पड़ता है। अगर आप शहर के हैरिटेज की फोटोग्राफी कर रहे हो तो, जहां आम लोग जाते हैं वह जगहों पर न जाये। किसी भी शहर में अनछुए हेरिटेज स्थानों को तलाशे और लोगों को नया पेश करने की ठान लें। इस तरह का काम सरकार और टूरिज्म संस्थाओं को बहुत उपयोगी होता है।
करीब 200 से अधिक विद्यार्थियों ने इस सेमिनार में हिस्सा लिया और फोटोग्राफी जर्नलिज्म के बारे में जाना। इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता द वायर के संस्थापक संपादक एमके वेणु, गुजरात के वरिष्ठ फोटोग्राफर शैलेश रावल, प्रो. सचिन बत्रा, विपुल मुद्गल, उमेश गोगना, धर्मेंदर कंवर एवं रोहित परिहार रहे। इमेजिन फोटोजर्निलस्ट सोसाइटी की टीम ने सभी अतिथिगण एवं कार्यक्रम के सहायकों को धन्यवाद व्यक्त किया।
द वायर के संस्थापक संपादक एमके वेणु ने कहा कि न्यूज़ रिपोर्टिंग में पहले से ही वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी का महत्व रहा है। पुराने ज़माने के फोटोजर्नलिस्ट की फोटो आज भी हमें एक स्टोरी कह जाती है और आज की तेज़ रफ़्तार जिंदगी में लोग फोटो देखकर ही स्टोरी पढ़ने के लिए उत्साहित होते हैं। दूसरी ओर तकनीक के सहारे लोग सच को नज़रअंदाज़ भी कर देते हैं और घटना की बारीकियों में नहीं जाते। टेक्नोलॉजी हमें सशक्त बनाने के लिए बनी है, दुर्बल और असहाय बनाने के लिए नहीं। हमें विवेकपूर्ण फोटोग्राफी करनी चाहिए और हमारे काम का देश के हित में इस्तेमाल होना चाहिए।
इंडिया टुडे के वरिष्ठ फोटोग्राफर शैलेश रावल ने कहा कि भविष्य में जब दूसरे ग्रह के लोगो से बात करनी होगी तो प्रथम भाषा फोटोग्राफी होगी। फोटोग्राफी का जब अविष्कार हुआ तब उसमे विज्ञान, गणितशास्त्र और कला का समन्वय था। फोटोग्राफी क्षेत्र में जब थोड़ी क्रांति हुई तो फोटो डवलप करने के केमिकल का उपयोग बंद हो गया और इसमें से विज्ञान निकल गया। ऐसी तरह जब डिजिटल फोटोग्राफी की शुरुआत हुई तो इसमें केवल कला रह गई। अब फोटोग्राफर बनने के लिए जो कौशल चाहिए वह केवल कला है। कला आतंरिक गुण होता है और सबकी विभिन्न सोच होती है।
वरिष्ठ पत्रकार विपुल मुद्गल ने कहा कि पत्रकारिता एक विषय कार्य है जो समाज के सभी डॉट्स को जोड़ने का काम करता है। चाहे हम लेखक या फोटोग्राफर, हमारा मुख्य काम सिस्टम और लोगों से जुड़ना है। हमें समाज में उन पहलुओं को निडर होकर उजागर करना होता है, जिन से लोगो की आजादी बनी रहे। टेक्नोलॉजी की मदद से लोगों को मुख्य धरा में शामिल करना चाहिए, वह टेक्नोलॉजी बेकार है जो पिछड़े लोगो के लिए अभिशाप बन जाती है।
वरिष्ठ संपादक रोहित परिहार ने कहा कि पहले के ज़माने में फोटो खींचने में फोटोजर्नलिस्ट को बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। फोटोग्राफर को स्टोरी के लिए लोगों को यकीन दिलाना पड़ता था कि यह फोटो छपने से उनको कोई नुकसान नहीं होगा। कई बार महिलाओं को घूंघट उठाकर फोटो खिंचवाने का निवेदन करना पड़ता था। ऐसे में फोटोग्राफी क्षेत्र में सेल्फ़ी तकनीक एक बड़ी क्रांति है। यह सेल्फी पहले के ज़माने के कैमरा में भी टाइमर तकनीक से उपलब्ध थी। फोटोग्राफी ने समाज में परिवर्तन लाने ने अहम् भूमिका निभाई है। समाज में आत्मविश्वास, भरोसा और सच को बरक़रार रखने में फोटोग्राफी क्षेत्र ने अच्छी भूमिका निभाई है।
ट्रेवल राइटर के धर्मेंदर कंवर ने कहा कि एक जर्नलिस्ट या फोटोग्राफर चाहे वह कितना ही अनुभवी हो, अगर अच्छी स्टोरी या फोटो चाहता है तो उसकी तलाश में गली-गली घूमना पड़ता है। अगर आप शहर के हैरिटेज की फोटोग्राफी कर रहे हो तो, जहां आम लोग जाते हैं वह जगहों पर न जाये। किसी भी शहर में अनछुए हेरिटेज स्थानों को तलाशे और लोगों को नया पेश करने की ठान लें। इस तरह का काम सरकार और टूरिज्म संस्थाओं को बहुत उपयोगी होता है।

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