जानिए, आखिर कौन है ये नीरव मोदी और किस तरह खेला गया 11.5 हजार करोड़ के PNB_घोटाला का खेल
नई दिल्ली। पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) में हुए 11 हजार करोड़ रुपए से भी ज्यादा के घोटाले का मामला सामने आने के बाद देशभर में इसी मामले की चर्चाएं बनी हुई है। हर कोई इस मामले के आरोपी नीरव मोदी को लेकर ये जानने के लिए उत्सुक है कि बजय माल्या से भी दो कदम आगे निकलकर इतना बड़ा घोटाला करने वाला ये नीरव मोदी आखिर है कौन और इसका पिछला बैकग्राउंड क्या है। वहीं सवाल ये भी यही उठ रहा है कि आखिर बैंक की नाक के नीचे से कैसे इतना बड़ा घोटाला कैसे हो गया और कैसे इसकी भनक भी किसी को नहीं लग पाई?
इस मामले में ताजा जानकारी के अनुसार, घोटाले के आरोपी नीरव मोदी और उसके परिवार को पकड़ने के लिये इंटरपोल ने डिफ्यूजन नोटिस जारी किया है। सीबीआई ने मोदी और उसके परिवार का पता लगाने के लिये इंटरपोल से संपर्क किया था। पीएनबी फर्जीवाड़े का पता लगने से पहले ही नीरव मोदी और उसका परिवार जनवरी महीने में देश छोड़कर भाग गया था। अधिकारियों का कहना है कि सीबीआई ने इंटरपोल से मोदी का पता लगाने के लिये डिफ्यूजन नोटिस जारी करने की अपील की है।
अधिकारियों का कहना है कि डिफ्यूज़न नोटिस किसी नोटिस से कम औपचारिक होता है, लेकिन इसका उपयोग किसी अपराधी की लोकेशन का पता लगाने के लिए किया जाता है। डिफ्यूज़न सीधे एनसीबी (इस मामले में सीबीआई) संबंधित सदस्य देश को भेजता है या फिर सभी सदस्य देशों को भेजा जाता है, जो इंटरपोल से जुड़े होते हैं। सीबीआई को उम्मीद है कि वो मोदी और उसके परिवार को पता आज यानि शुक्रवार ही लगा लेंगे।
कैसे हो गया इतना बड़ा घोटाला :
इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए पूरे मामले की परत दर परत तक जाने की जरूरत है। मीडिया रिपोर्ट्स में अभी तक इस खेल में दो बैंककर्मियों की मुख्य आरोपी नीरव मोदी के साथ मिलीभगत सामने आ रही है। इनमें से एक पूर्व डिप्टी मैनेजर और दूसरा क्लर्क है। इस पूरी साठगांठ को समझने के लिए पूरे बैंकिंग सिस्टम को समझने की जरूरत है। सबसे पहले आपको ये बताते है कि इस घोटाले का असली खेल क्या था और किस तरह से इसे अन्जाम दिया गया। दरअसल, इस घोटाले का मुख्य सूत्रधार एक सहमति पत्र था, जो कि बैंकिंग सेक्टर में लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (LoU) के नाम से जाना जाता है।
क्या होता है यह लेटर ऑफ अंडरटेकिंग :
लेटर ऑफ अंडरटेकिंग एक प्रकार से किसी एक बैंक की ओर से किसी दूसरे बैंक को दी जानी वाली गारंटी होती है, जिससे उन दोनों बैंको से सम्बंध रखने वाले व्यक्ति को रुपए आसानी से मिल जाते हैं। दरअसल यदि कोई व्यक्ति अपने देश के बाहर से कोई सामान आयात करता है तो निर्यातक को विदेश में उसके पैसे चुकाने होते हैं। इसके लिए कई बार आयातक कुछ समय के लिए बैंक से उधार लेता है। इसके लिए बैंक आयातकर्ता के लिए विदेश में मौजूद किसी बैंक को एलओयू देता है, जिसमें लिखा होता है कि अमुक काम के लिए आप एक निश्चित पेमेंट कर दीजिए। इसमें बैंक वादा करता है कि वह निर्धारित अवधि के भीतर ब्याज समेत उसकी रकम को लौटा देगा।
कैसे काम करता है लेटर ऑफ अंडरटेकिंग :
पीएनबी घोटाले में मुंबई की बैंक की एक कॉरपोरेट ब्रांच के दो कर्मचारियों ने नीरव मोदी के लिए फर्जी एलओयू जारी किए, जिसका ब्रांच बैंक का कोई सरोकार नहीं था। बैंक का सरोकार इसलिए नहीं था, क्योंकि बैंक को इसका पता भी नहीं लग पाया था। दरअसल, एलओयू के लिए एक स्विफ्ट सिस्टम होता है। जो कि एक अंतरराष्ट्रीय कम्युनिकेशन सिस्टम होता है और दुनियाभर के बैंको को आपस में जोड़ता है। इस घोटाले में शामिल कर्मचारियों के पास इसका कंट्रोल था। जब किसी विदेशी बैंक को स्विफ्ट सिस्टम के तहत एलओयू कोड मिलते हैं तो वह उनको आधिकारिक और सटीक मानता है और सम्बंधित बैंक की गारंटी पर व्यवसायी को पैसे उधार के रूप में दे देता है।
क्या हुआ है इस घोटाले में :
पीएनबी मुंबई बैंक की एक कॉरपोरेट ब्रांच में इस काम को करने वालों में एक क्लर्क था, जो डाटा फीड करता था। वहीं दूसरा वह अधिकारी था, जो इस जानकारी की आधिकारिक पुष्टि करता था। इस मामले में इन लोगों ने फर्जी एलओयू बनाकर भेज दिया। इस मामले में ऐसा लगता है कि स्विफ्ट सिस्टम, कोर बैंकिंग से जुड़ा नहीं था। चूंकि फर्जी संदेश भेजे गए और उनको भेजने के बाद डिलीट कर दिया। ऐसे में कोर बैंकिंग में कोई एंट्री नहीं हुई और इसी वजह से किसी को इस बारे में कानोंकान भनक तक नहीं लग पाई।
कैसे संभव हुआ एक साथ इतना बड़ा घोटाला :
इतनी बड़ी राशि का घोटाला एक साथ किया जाना संभव नहीं है, क्योंकि कोई भी बैंक एक साथ इतनी बड़ी राशि उधार दिए जाने की गारंटी नहीं लेता है। दरअसल, इस घोटाले की शुरूआत 2011 से ही हो गई थी और घोटाले का यह खेल तभी से चल रहा था। 2011 से लगातार एक कर्ज को खत्म करने के लिए दिए जाने वाला समय पूरा होने से पूर्व ही दूसरा बड़ा कर्ज लिया जाता रहा और उससे पुराने कर्ज को अदा किया जाता रहा। ऐसे में इसके बारे में किसी को पता तक नहीं लग पाया।
कैसे हुआ इस घोटाले का राजफाश :
2011 से बाद से लगातार चल रहे इस खेल के बीच पिछले साल उस बैंक अधिकारी रिटायर्टमेंट हो गया, जो इसमें मिला हुआ था। बैंक के नए अधिकारी से नीरव मोदी की कंपनी ने जब नए एलओयू के लिए संपर्क किया तो उसने इसके लिए जमानत राशि मांगी। इस पर कंपनी ने बताया कि इससे पहले तो कुछ नहीं लिया गया था। बस यहीं से बैंक को गड़बड़ी के संकेत मिले। इसके बाद एक विदेशी बैंक ने समय पूरा होने पर पीएनबी से एलओयू के आधार पर दिए गए पैसे वापस मांगे तो पीएनबी ने कहा कि उसने तो कभी ऐसे लोन के लिए कहा ही नहीं। इस पर बैंक ने जांच एजेंसियों के पास शिकायत की और जांच के बाद इस मामले की परतें खुलती जा रही है।
कौन है ये नीरव मोदी :
चलिए, इन सबसे इतर अब आपको ये बताते हैं कि आखिर ये नीरव मोदी है कौन और इसका क्या बैकग्राउंड रहा है। नीरव के परिवार के अन्य सदस्यों में उसकी पत्नी एमी मोदी, भाई निशाल मोदी और मेहुल चोकसी शामिल हैं। नीरव का परिवार गुजरात के पालनपुर का रहने वाला है और उसके पिता पीयूष काफी सालों पहले ही परिवार के साथ बेल्जियम में बस गए थे। खबरों के मुताबिक नीरव के दादा पालनपुर में ही किराये के मकान में रहते थे और दादी पापड़ बेचा करती थीं। नीरव का भाई निशाल बेल्जियम का नागरिक है और नीरव की पत्नी एमी के पास अमेरिका की नागरिकता है।
नीरव मोदी की कंपनी का नाम फायरस्टार डॉयमंड है और नीरव उसके फाउंडर व चेयरमैन है। नीरव का ज्वैलरी ब्रांड भी नीरव मोदी नाम से ही है। नीरव ने अपने कारोबार की शुरूआत छोटे स्तर पर 15 कर्मचारियों के साथ की थी, जो कि आज तकरीबन 1,200 से भी ज्यादा है। नीरव के बनाए डायमंड नेकलेस हांगकांग के ऑक्शन में 3.56 करोड़ डॉलर में बिका था। नीरव के स्टोर्स दुबई, इंडिया और अमेरिका में काफी तादाद में हैं। देश के सबसे अमीर ज्वैलर्स की फेहरिस्त में नीरव मोदी का नाम दूसरे नम्बर पर आता है। बॉलीवुड और हॉलीवुड में नीरव मोदी एक चर्चित नाम है, जिसकी डायमंड ज्वैलरी को पसंद करने वालों की सूची में बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक कई स्टार्स एवं सुपरस्टार्स के नाम शामिल हैं।
इस मामले में ताजा जानकारी के अनुसार, घोटाले के आरोपी नीरव मोदी और उसके परिवार को पकड़ने के लिये इंटरपोल ने डिफ्यूजन नोटिस जारी किया है। सीबीआई ने मोदी और उसके परिवार का पता लगाने के लिये इंटरपोल से संपर्क किया था। पीएनबी फर्जीवाड़े का पता लगने से पहले ही नीरव मोदी और उसका परिवार जनवरी महीने में देश छोड़कर भाग गया था। अधिकारियों का कहना है कि सीबीआई ने इंटरपोल से मोदी का पता लगाने के लिये डिफ्यूजन नोटिस जारी करने की अपील की है।
अधिकारियों का कहना है कि डिफ्यूज़न नोटिस किसी नोटिस से कम औपचारिक होता है, लेकिन इसका उपयोग किसी अपराधी की लोकेशन का पता लगाने के लिए किया जाता है। डिफ्यूज़न सीधे एनसीबी (इस मामले में सीबीआई) संबंधित सदस्य देश को भेजता है या फिर सभी सदस्य देशों को भेजा जाता है, जो इंटरपोल से जुड़े होते हैं। सीबीआई को उम्मीद है कि वो मोदी और उसके परिवार को पता आज यानि शुक्रवार ही लगा लेंगे।
कैसे हो गया इतना बड़ा घोटाला :
इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए पूरे मामले की परत दर परत तक जाने की जरूरत है। मीडिया रिपोर्ट्स में अभी तक इस खेल में दो बैंककर्मियों की मुख्य आरोपी नीरव मोदी के साथ मिलीभगत सामने आ रही है। इनमें से एक पूर्व डिप्टी मैनेजर और दूसरा क्लर्क है। इस पूरी साठगांठ को समझने के लिए पूरे बैंकिंग सिस्टम को समझने की जरूरत है। सबसे पहले आपको ये बताते है कि इस घोटाले का असली खेल क्या था और किस तरह से इसे अन्जाम दिया गया। दरअसल, इस घोटाले का मुख्य सूत्रधार एक सहमति पत्र था, जो कि बैंकिंग सेक्टर में लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (LoU) के नाम से जाना जाता है।
क्या होता है यह लेटर ऑफ अंडरटेकिंग :
लेटर ऑफ अंडरटेकिंग एक प्रकार से किसी एक बैंक की ओर से किसी दूसरे बैंक को दी जानी वाली गारंटी होती है, जिससे उन दोनों बैंको से सम्बंध रखने वाले व्यक्ति को रुपए आसानी से मिल जाते हैं। दरअसल यदि कोई व्यक्ति अपने देश के बाहर से कोई सामान आयात करता है तो निर्यातक को विदेश में उसके पैसे चुकाने होते हैं। इसके लिए कई बार आयातक कुछ समय के लिए बैंक से उधार लेता है। इसके लिए बैंक आयातकर्ता के लिए विदेश में मौजूद किसी बैंक को एलओयू देता है, जिसमें लिखा होता है कि अमुक काम के लिए आप एक निश्चित पेमेंट कर दीजिए। इसमें बैंक वादा करता है कि वह निर्धारित अवधि के भीतर ब्याज समेत उसकी रकम को लौटा देगा।
कैसे काम करता है लेटर ऑफ अंडरटेकिंग :
पीएनबी घोटाले में मुंबई की बैंक की एक कॉरपोरेट ब्रांच के दो कर्मचारियों ने नीरव मोदी के लिए फर्जी एलओयू जारी किए, जिसका ब्रांच बैंक का कोई सरोकार नहीं था। बैंक का सरोकार इसलिए नहीं था, क्योंकि बैंक को इसका पता भी नहीं लग पाया था। दरअसल, एलओयू के लिए एक स्विफ्ट सिस्टम होता है। जो कि एक अंतरराष्ट्रीय कम्युनिकेशन सिस्टम होता है और दुनियाभर के बैंको को आपस में जोड़ता है। इस घोटाले में शामिल कर्मचारियों के पास इसका कंट्रोल था। जब किसी विदेशी बैंक को स्विफ्ट सिस्टम के तहत एलओयू कोड मिलते हैं तो वह उनको आधिकारिक और सटीक मानता है और सम्बंधित बैंक की गारंटी पर व्यवसायी को पैसे उधार के रूप में दे देता है।
क्या हुआ है इस घोटाले में :
पीएनबी मुंबई बैंक की एक कॉरपोरेट ब्रांच में इस काम को करने वालों में एक क्लर्क था, जो डाटा फीड करता था। वहीं दूसरा वह अधिकारी था, जो इस जानकारी की आधिकारिक पुष्टि करता था। इस मामले में इन लोगों ने फर्जी एलओयू बनाकर भेज दिया। इस मामले में ऐसा लगता है कि स्विफ्ट सिस्टम, कोर बैंकिंग से जुड़ा नहीं था। चूंकि फर्जी संदेश भेजे गए और उनको भेजने के बाद डिलीट कर दिया। ऐसे में कोर बैंकिंग में कोई एंट्री नहीं हुई और इसी वजह से किसी को इस बारे में कानोंकान भनक तक नहीं लग पाई।
कैसे संभव हुआ एक साथ इतना बड़ा घोटाला :
इतनी बड़ी राशि का घोटाला एक साथ किया जाना संभव नहीं है, क्योंकि कोई भी बैंक एक साथ इतनी बड़ी राशि उधार दिए जाने की गारंटी नहीं लेता है। दरअसल, इस घोटाले की शुरूआत 2011 से ही हो गई थी और घोटाले का यह खेल तभी से चल रहा था। 2011 से लगातार एक कर्ज को खत्म करने के लिए दिए जाने वाला समय पूरा होने से पूर्व ही दूसरा बड़ा कर्ज लिया जाता रहा और उससे पुराने कर्ज को अदा किया जाता रहा। ऐसे में इसके बारे में किसी को पता तक नहीं लग पाया।
कैसे हुआ इस घोटाले का राजफाश :
2011 से बाद से लगातार चल रहे इस खेल के बीच पिछले साल उस बैंक अधिकारी रिटायर्टमेंट हो गया, जो इसमें मिला हुआ था। बैंक के नए अधिकारी से नीरव मोदी की कंपनी ने जब नए एलओयू के लिए संपर्क किया तो उसने इसके लिए जमानत राशि मांगी। इस पर कंपनी ने बताया कि इससे पहले तो कुछ नहीं लिया गया था। बस यहीं से बैंक को गड़बड़ी के संकेत मिले। इसके बाद एक विदेशी बैंक ने समय पूरा होने पर पीएनबी से एलओयू के आधार पर दिए गए पैसे वापस मांगे तो पीएनबी ने कहा कि उसने तो कभी ऐसे लोन के लिए कहा ही नहीं। इस पर बैंक ने जांच एजेंसियों के पास शिकायत की और जांच के बाद इस मामले की परतें खुलती जा रही है।
कौन है ये नीरव मोदी :
चलिए, इन सबसे इतर अब आपको ये बताते हैं कि आखिर ये नीरव मोदी है कौन और इसका क्या बैकग्राउंड रहा है। नीरव के परिवार के अन्य सदस्यों में उसकी पत्नी एमी मोदी, भाई निशाल मोदी और मेहुल चोकसी शामिल हैं। नीरव का परिवार गुजरात के पालनपुर का रहने वाला है और उसके पिता पीयूष काफी सालों पहले ही परिवार के साथ बेल्जियम में बस गए थे। खबरों के मुताबिक नीरव के दादा पालनपुर में ही किराये के मकान में रहते थे और दादी पापड़ बेचा करती थीं। नीरव का भाई निशाल बेल्जियम का नागरिक है और नीरव की पत्नी एमी के पास अमेरिका की नागरिकता है।
नीरव मोदी की कंपनी का नाम फायरस्टार डॉयमंड है और नीरव उसके फाउंडर व चेयरमैन है। नीरव का ज्वैलरी ब्रांड भी नीरव मोदी नाम से ही है। नीरव ने अपने कारोबार की शुरूआत छोटे स्तर पर 15 कर्मचारियों के साथ की थी, जो कि आज तकरीबन 1,200 से भी ज्यादा है। नीरव के बनाए डायमंड नेकलेस हांगकांग के ऑक्शन में 3.56 करोड़ डॉलर में बिका था। नीरव के स्टोर्स दुबई, इंडिया और अमेरिका में काफी तादाद में हैं। देश के सबसे अमीर ज्वैलर्स की फेहरिस्त में नीरव मोदी का नाम दूसरे नम्बर पर आता है। बॉलीवुड और हॉलीवुड में नीरव मोदी एक चर्चित नाम है, जिसकी डायमंड ज्वैलरी को पसंद करने वालों की सूची में बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक कई स्टार्स एवं सुपरस्टार्स के नाम शामिल हैं।

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