..तो क्या अब किसी 'विशेष खबर' के बारे में बात करने में भी मानहानि हो जाएगी?
नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री और अमित शाह के भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद शाह के बेटे जय शाह की कंपनी के कारोबार में 16 हजार गुना बढ़ोतरी होने की खबर को वेब पोर्टल The Wire में प्रकाशित करने के बाद भाजपा में खलबली मची हुई है। वहीं अब अमित शाह के बेटे ने भी पत्रकार, एडिटर और पोर्टल के मालिक के खिलाफ अहमदाबाद कोर्ट में आपराधिक मानहानि का मुकदमा ठोक दिया है।
The Wire की स्वतंत्र पत्रकार रोहिणी सिंह द्वारा दी गई इस खबर के बाद देश के कई हिस्सों में भाजपा नेतृत्व से जुड़े पदाधिकारीगण शाह के बचाव में उतरते दिखाई दिए और इस खबर को झुठी, तथ्यहीन तथा अमित शाह की छवि को धूमिल किए जाने का प्रयास बताया। सबसे पहले रेलमंत्री पीयूष गोयल सामने आए, जिन्होेंने इस खबर को झूठी और बेबुनियाद बताया। साथ ही वेबसाइट के खिलाफ 100 करोड़ रुपये का मानहानि का केस करने की बात कही। इसके बाद और भी कई भाजपा नेता सामने आए, जिन्होंने इस खबर को बेबुनियाद और तथ्यहीन बताया।
ऐसे में एक बात समझ से परे है कि, शाह के बचाव में सामने आए ये सभी नेतागण अगर पार्टी के अथवा अमित शाह और पीएम मोदी के समर्थन में अपनी बात रखते तो बात कुछ पल्ले पड़ने वाली लगती, लेकिन इन्होंने पार्टी, अमित शाह और पीएम मोदी का समर्थन करने के साथ—साथ जय शाह का भी बचाव एवं समर्थन करने वाली बात रखी। हालांकि ये भी हो सकता है कि इन सभी ने जय के बयान को लेकर अपनी बात कही हो, लेकिन जब जय का भाजपा से कोई सरोकार ही नहीं है, तो फिर भाजपा के नेतागणों को जय के बचाव में क्यों आना चाहिए था। जबकि यहीे सब बातें अगर अमित शाह, जय केे पिता होने के नाते कहते तो बात कुछ और भी दमदार और असरदार महसूस होती।
कायदे से तो बेटे के बचाव में अगर अमित शाह बतौर पिता सामने आकर ये कहते कि, 'मेरे बेटे ने मेरी राजनीतिक हैसियत का किसी भी तरह से कोई लाभ नहीं लिया है।' जहां तक बेटे की कंपनी के कारोबार में इजाफा होने की बात है तो ये बहुत ही अच्छी बात है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपने कारोबार में इजाफा करने के लिए ही दिन—रात एक कर मेहनत एवं उसके प्रयासों में जुटा रहता है। ऐसे में जय की कंपनी के कारोबार में इजाफा होना भी बहुत अच्छी बात है। लेकिन अगर अमित शाह खुद अपने बेटे की मेहनत और उसके प्रयासों से कंपनी के कारोबार में बढ़ोतरी होने की बात कहते तो उनकी बात में बेशक यकीन की बढ़ोतरी करने वाली बात होती।
वहीं दूसरी ओर, The Wire की खबर को लेकर जय ने अपने बयान में कहा कि, 'न्यूज़ वेबसाइट The Wire ने 'The Golden Touch of Jay Amit Shah' नाम से एक लेख प्रकाशित किया, जिसे रोहिणी सिंह ने लिखा है। इस वेबसाइट के संपादक सिद्धार्थ वरदराजन हैं। इस लेख में मुझ पर झूठे, अपमानजनक और बदनाम करने वाले इल्ज़ाम लगाये गए हैं, जिससे लोगों के दिमाग में यह बात आये कि मेरी व्यापारिक सफलता की वजह मेरे पिता अमित भाई शाह का राजनीतिक पद है।'
जय ने आगे लिखा कि, 'मेरे सभी व्यापार पूरी तरह से वैध हैं और व्यावसायिक क़ानून के दायरे में हैं, इस बात की पुष्टि मेरे टैक्स रिकार्ड्स और बैंक ट्रांजेक्शन से होती है। मेरे द्वारा एनबीएफसी या नॉन-फंडेड क्रेडिट सुविधा या सहकारी बैंक से लिए गए कर्ज़ पूरी तरह से वाणिज्यिक शर्तों पर क़ानून के अनुसार लिए गए थे। ये कर्ज़ ब्याज की व्यावसायिक दर के अनुसार नियत समय में चेक द्वारा चुका दिए गए हैं। मैंने सहकारी बैंक से क्रेडिट सुविधा लेने के लिए अपनी पारिवारिक संपत्ति गिरवी रखी थी।' अपने बयान के आखिर में दूसरे न्यूज संस्थानों अथवा वेब पोर्टल चलाने वालों को चेताते हुए जय ने लिखा कि, 'अगर कोई भी इस बताये गये लेख में मुझ पर लगाये गए इल्जामों को दोबारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रकाशित/प्रसारित करता है, तो वह व्यक्ति/संस्थान भी इसी अपराध/सिविल लायबिलिटी का दोषी होगा।'
अब जय की इस चेतावनी का क्या मतलब निकाला जाए कि क्या अंग्रेज़ी अखबारों में छपी खबरों का हिंदी में अनुवाद करने पर भी मानहानि हो जाती है? तो फिर अनुवाद की खबरों या पोस्ट से मानहानि का रेट कैसे तय किया जाएगा। शेयर करने वालों या शेयर किए गए पोस्ट पर लाइक, शेयर अथवा कमेन्ट करने वालों पर मानहानि का रेट कैसे तय किया जाएगा? और एक बात सबसे अहम, कि जिनकी सामर्थ्य में कुछ है ही नहीं उनके बारे में आखिर क्या रेट तय की जाएगी। कोई भी न्यूज संस्थानों अथवा वेब पोर्टल चलाने वाले किसी की विशेष खबर के बारे में बात भी ना करें, या फिर अभी तक चली आ रही पद्धति के अनुसार किसी अंग्रेजी में प्रकाशित खबर का अनुवाद भी ना करें।
फिर तो किसी सोशल मीडिया में पोस्ट की जाने वाली किसी पोस्ट को भी लाइक, शेयर अथवा कमेंट करने से पहले 100, 200, 500, 1000 या फिर 16 हजार गुना बार सोच लें। अगर ऐसा है तो फिर बड़े—बड़े राजनेता, जो अब तक अपनी सभाओं में जनता से जो बड़े—बड़े वादे करते आए हैं और फिर उन्हें पूरा नहीं किया जाता, तो क्या जनता भी इन नेताओं पर मानहानि का दावा करें।
(यह लेख मूलत: पवन टेलर के फेसबुक अकाउंट पर प्रकाशित हुआ है।)
The Wire की स्वतंत्र पत्रकार रोहिणी सिंह द्वारा दी गई इस खबर के बाद देश के कई हिस्सों में भाजपा नेतृत्व से जुड़े पदाधिकारीगण शाह के बचाव में उतरते दिखाई दिए और इस खबर को झुठी, तथ्यहीन तथा अमित शाह की छवि को धूमिल किए जाने का प्रयास बताया। सबसे पहले रेलमंत्री पीयूष गोयल सामने आए, जिन्होेंने इस खबर को झूठी और बेबुनियाद बताया। साथ ही वेबसाइट के खिलाफ 100 करोड़ रुपये का मानहानि का केस करने की बात कही। इसके बाद और भी कई भाजपा नेता सामने आए, जिन्होंने इस खबर को बेबुनियाद और तथ्यहीन बताया।
ऐसे में एक बात समझ से परे है कि, शाह के बचाव में सामने आए ये सभी नेतागण अगर पार्टी के अथवा अमित शाह और पीएम मोदी के समर्थन में अपनी बात रखते तो बात कुछ पल्ले पड़ने वाली लगती, लेकिन इन्होंने पार्टी, अमित शाह और पीएम मोदी का समर्थन करने के साथ—साथ जय शाह का भी बचाव एवं समर्थन करने वाली बात रखी। हालांकि ये भी हो सकता है कि इन सभी ने जय के बयान को लेकर अपनी बात कही हो, लेकिन जब जय का भाजपा से कोई सरोकार ही नहीं है, तो फिर भाजपा के नेतागणों को जय के बचाव में क्यों आना चाहिए था। जबकि यहीे सब बातें अगर अमित शाह, जय केे पिता होने के नाते कहते तो बात कुछ और भी दमदार और असरदार महसूस होती।
कायदे से तो बेटे के बचाव में अगर अमित शाह बतौर पिता सामने आकर ये कहते कि, 'मेरे बेटे ने मेरी राजनीतिक हैसियत का किसी भी तरह से कोई लाभ नहीं लिया है।' जहां तक बेटे की कंपनी के कारोबार में इजाफा होने की बात है तो ये बहुत ही अच्छी बात है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति अपने कारोबार में इजाफा करने के लिए ही दिन—रात एक कर मेहनत एवं उसके प्रयासों में जुटा रहता है। ऐसे में जय की कंपनी के कारोबार में इजाफा होना भी बहुत अच्छी बात है। लेकिन अगर अमित शाह खुद अपने बेटे की मेहनत और उसके प्रयासों से कंपनी के कारोबार में बढ़ोतरी होने की बात कहते तो उनकी बात में बेशक यकीन की बढ़ोतरी करने वाली बात होती।
वहीं दूसरी ओर, The Wire की खबर को लेकर जय ने अपने बयान में कहा कि, 'न्यूज़ वेबसाइट The Wire ने 'The Golden Touch of Jay Amit Shah' नाम से एक लेख प्रकाशित किया, जिसे रोहिणी सिंह ने लिखा है। इस वेबसाइट के संपादक सिद्धार्थ वरदराजन हैं। इस लेख में मुझ पर झूठे, अपमानजनक और बदनाम करने वाले इल्ज़ाम लगाये गए हैं, जिससे लोगों के दिमाग में यह बात आये कि मेरी व्यापारिक सफलता की वजह मेरे पिता अमित भाई शाह का राजनीतिक पद है।'
जय ने आगे लिखा कि, 'मेरे सभी व्यापार पूरी तरह से वैध हैं और व्यावसायिक क़ानून के दायरे में हैं, इस बात की पुष्टि मेरे टैक्स रिकार्ड्स और बैंक ट्रांजेक्शन से होती है। मेरे द्वारा एनबीएफसी या नॉन-फंडेड क्रेडिट सुविधा या सहकारी बैंक से लिए गए कर्ज़ पूरी तरह से वाणिज्यिक शर्तों पर क़ानून के अनुसार लिए गए थे। ये कर्ज़ ब्याज की व्यावसायिक दर के अनुसार नियत समय में चेक द्वारा चुका दिए गए हैं। मैंने सहकारी बैंक से क्रेडिट सुविधा लेने के लिए अपनी पारिवारिक संपत्ति गिरवी रखी थी।' अपने बयान के आखिर में दूसरे न्यूज संस्थानों अथवा वेब पोर्टल चलाने वालों को चेताते हुए जय ने लिखा कि, 'अगर कोई भी इस बताये गये लेख में मुझ पर लगाये गए इल्जामों को दोबारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रकाशित/प्रसारित करता है, तो वह व्यक्ति/संस्थान भी इसी अपराध/सिविल लायबिलिटी का दोषी होगा।'
अब जय की इस चेतावनी का क्या मतलब निकाला जाए कि क्या अंग्रेज़ी अखबारों में छपी खबरों का हिंदी में अनुवाद करने पर भी मानहानि हो जाती है? तो फिर अनुवाद की खबरों या पोस्ट से मानहानि का रेट कैसे तय किया जाएगा। शेयर करने वालों या शेयर किए गए पोस्ट पर लाइक, शेयर अथवा कमेन्ट करने वालों पर मानहानि का रेट कैसे तय किया जाएगा? और एक बात सबसे अहम, कि जिनकी सामर्थ्य में कुछ है ही नहीं उनके बारे में आखिर क्या रेट तय की जाएगी। कोई भी न्यूज संस्थानों अथवा वेब पोर्टल चलाने वाले किसी की विशेष खबर के बारे में बात भी ना करें, या फिर अभी तक चली आ रही पद्धति के अनुसार किसी अंग्रेजी में प्रकाशित खबर का अनुवाद भी ना करें।
फिर तो किसी सोशल मीडिया में पोस्ट की जाने वाली किसी पोस्ट को भी लाइक, शेयर अथवा कमेंट करने से पहले 100, 200, 500, 1000 या फिर 16 हजार गुना बार सोच लें। अगर ऐसा है तो फिर बड़े—बड़े राजनेता, जो अब तक अपनी सभाओं में जनता से जो बड़े—बड़े वादे करते आए हैं और फिर उन्हें पूरा नहीं किया जाता, तो क्या जनता भी इन नेताओं पर मानहानि का दावा करें।
(यह लेख मूलत: पवन टेलर के फेसबुक अकाउंट पर प्रकाशित हुआ है।)
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