इसरो ने रचा नया इतिहास, सफलतापूर्वक लॉन्च हुआ जीएसएलवी मार्क 3, पीएम मोदी ने दी बधाई
हैदराबाद। भारत के राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्थान भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने सोमवार को उस वक्त एक नया इतिहास लिखा, जब उसने 200 हाथियों के बराबर वजनी जीएसएलवी मार्क तीन का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया। इसरो ने कामयाबी का इतिहास रचते हुए जीएसएलवी मार्क तीन का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण आज शाम को पांच बजकर 28 मिनट पर किया।
इसरो की इस सफलता के साथ ही भारत उन चुनिंदा की श्रेणी में आ गया है, भारी भरकम सैटेलाइट को अंतरिक्ष में भेजने की क्षमता रखते हैं। इस श्रेणी में अभी तक अमेरिका, रूस, चीन और जापान शामिल हैं। जीएसएलवी मार्क तीन ने श्रीहरिकोटा से उड़ान भरी। इस कामयाबी के बाद भारत के पास अंतरिक्ष की दुनिया में नए कीर्तिमान स्थापित करने के अवसर होंगे और भारत अब अंतरिक्ष में मानवयुक्त मिशन भेज सकेगा। इसके अलावा व्यावसायिक सैटेलाइट प्रक्षेपण के लिए दुनिया में भारत की मांग और बढ़ेगी। साथ ही इस सफल प्रक्षेपण के बाद भारत में इंटरनेट की गति में बेतहाशा वृद्धि होगी।
इसरो की डेढ़ साल के अंदर दो अन्य संचार उपग्रहों जीसैट-11 और जीसैट-20 को भी अंतरिक्ष में भेजने की योजना है। इस कामयाबी के साथ ही भविष्य में अंतरिक्ष में यात्रियों को भेजने के लिए भारत का रास्ता भी साफ हो गया है। गौरतलब है कि आज अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित 41 भारतीय उपग्रहों में से 13 संचार उपग्रह हैं। सही मायने में यह 'मेड इन इंडिया' उपग्रह डिजिटल भारत को सशक्त करेगा। भारत में अभी तक सबसे ज्यादा भार ले जाने में सक्षम भू-स्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान जीएसएलवी एमके-3 सभी का ध्यान आकर्षित कर रहा है। इसका वजन पांच पूरी तरह से भरे बोइंग जम्बो विमान या 200 हाथियों के बराबर है।
जीएसएलवी मार्क तीन पूरी तरह से स्वदेशी है और यह भारत का सबसे वजनी रॉकेट है। यह अपने साथ GSAT 19 सैटेलाइट को अंतरिक्ष में लेकर गया है। जीएसएलवी मार्क 3 को फैट ब्वॉय के नाम से भी जाना जाता है। इस रॉकेट का वजन 640 टन है। यह आठ टन वजन अंतरिक्ष में लेकर जा सकता है। इस रॉकेट की सबसे बड़ी खासियत यह है कि रॉकेट के मुख्य व सबसे बड़े क्रायोजेनिक इंजन को इसरो के वैज्ञानिकों ने भारत में ही विकसित किया है, जो पहली बार किसी रॉकेट को उड़ने की शक्ति प्रदान करेगा। यह 300 करोड़ की लागत से बना है। पहले यह रॉकेट मई के अंत में छोड़ा जाना था।
इसरो की इस सफलता के साथ ही भारत उन चुनिंदा की श्रेणी में आ गया है, भारी भरकम सैटेलाइट को अंतरिक्ष में भेजने की क्षमता रखते हैं। इस श्रेणी में अभी तक अमेरिका, रूस, चीन और जापान शामिल हैं। जीएसएलवी मार्क तीन ने श्रीहरिकोटा से उड़ान भरी। इस कामयाबी के बाद भारत के पास अंतरिक्ष की दुनिया में नए कीर्तिमान स्थापित करने के अवसर होंगे और भारत अब अंतरिक्ष में मानवयुक्त मिशन भेज सकेगा। इसके अलावा व्यावसायिक सैटेलाइट प्रक्षेपण के लिए दुनिया में भारत की मांग और बढ़ेगी। साथ ही इस सफल प्रक्षेपण के बाद भारत में इंटरनेट की गति में बेतहाशा वृद्धि होगी।
इसरो की डेढ़ साल के अंदर दो अन्य संचार उपग्रहों जीसैट-11 और जीसैट-20 को भी अंतरिक्ष में भेजने की योजना है। इस कामयाबी के साथ ही भविष्य में अंतरिक्ष में यात्रियों को भेजने के लिए भारत का रास्ता भी साफ हो गया है। गौरतलब है कि आज अंतरिक्ष की कक्षा में स्थापित 41 भारतीय उपग्रहों में से 13 संचार उपग्रह हैं। सही मायने में यह 'मेड इन इंडिया' उपग्रह डिजिटल भारत को सशक्त करेगा। भारत में अभी तक सबसे ज्यादा भार ले जाने में सक्षम भू-स्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान जीएसएलवी एमके-3 सभी का ध्यान आकर्षित कर रहा है। इसका वजन पांच पूरी तरह से भरे बोइंग जम्बो विमान या 200 हाथियों के बराबर है।
जीएसएलवी मार्क तीन पूरी तरह से स्वदेशी है और यह भारत का सबसे वजनी रॉकेट है। यह अपने साथ GSAT 19 सैटेलाइट को अंतरिक्ष में लेकर गया है। जीएसएलवी मार्क 3 को फैट ब्वॉय के नाम से भी जाना जाता है। इस रॉकेट का वजन 640 टन है। यह आठ टन वजन अंतरिक्ष में लेकर जा सकता है। इस रॉकेट की सबसे बड़ी खासियत यह है कि रॉकेट के मुख्य व सबसे बड़े क्रायोजेनिक इंजन को इसरो के वैज्ञानिकों ने भारत में ही विकसित किया है, जो पहली बार किसी रॉकेट को उड़ने की शक्ति प्रदान करेगा। यह 300 करोड़ की लागत से बना है। पहले यह रॉकेट मई के अंत में छोड़ा जाना था।
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